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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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अध्याय - ३
वर्धमानसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
वर्धमानसूरि का व्यक्तित्व परिचय
प्रस्तुत कृति के रचनाकार अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि हैं। अभयदेवसूरि और वर्धमानसूरि जैसे प्रसिद्ध नामों को देखकर सामान्यतः चन्द्रपुरीय वर्धमानसूरि एवं नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि का स्मरण हो आता है, किन्तु आचारदिनकर के कर्त्ता वर्धमानसूरि इनसे भिन्न हैं। श्वेताम्बर - परम्परा में वर्धमानसूरि नाम के अनेक आचार्य हुए हैं, अतः यह संशय होना स्वाभाविक है कि इस कृति के रचनाकार वर्धमानसूरि कौन हैं? खरतरगच्छ के संस्थापक जिनेश्वरसूरि के गुरु भी वर्धमानसूरि थे। इनका काल विक्रम की (दसवीं - ग्यारहवीं) शती माना जाता है। नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि ( प्रथम ) के शिष्य के रूप में भी वर्धमानसूरि का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने आदिनाथ - चरित्र की रचना की थी और जिनका काल विक्रम की ग्यारहवीं-बारहवीं शती माना जाता है। इसी प्रकार गोविन्दसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि का भी उल्लेख मिलता है, जो सटीक "गणरत्न महोदधि" के कर्त्ता हैं। उनका काल विक्रम की ग्यारहवीं-बारहवीं शती माना जाता है । इसी श्रेणी में “ वासुपूज्य - चरित्र” के लेखक वर्धमानसूरि का भी उल्लेख मिलता है, जिनका काल विक्रम की बारहवीं - तेरहवीं शती माना जाता है। ऐसी परिस्थिति में ग्रन्थ- प्रशस्ति के बिना इसके वास्तविक कर्त्ता कौन थे ? - यह पता करना अत्यन्त जटिल कार्य होता, परन्तु रचनाकार वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर की अन्तिम प्रशस्ति में स्पष्ट रूप से इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर दिया है। इस प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी सम्पूर्ण वंश-परम्परा का उल्लेख करते हुए अपने को खरतरगच्छ की रुद्रपल्ली - शाखा के अभयदेवसूरि का शिष्य बताया है। ग्रन्थ-प्रशस्ति में उन्होंने जो अपनी गुरु-परम्परा सूचित की है, वह इस प्रकार है१८_
आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, पृ. ३६७, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करणः १६२२.
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