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साध्वी मोक्षरला श्री
१४. चौदहवें उदय में प्रजापति, आर्ष, दैव, ब्राह्म, पैशाच, राक्षस, गान्धर्व
एवं आसुर-इन आठ प्रकार के विवाहों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही इस उदय में वेदीस्थापना, कुलकरों की पूजाविधि, अग्निस्थापना-विधि, अग्निसंतर्पण-विधि, उत्तम अर्घविधि आदि का भी उल्लेख है। इसी उदय के अन्त में गणिकाविवाह-विधि
का भी उल्लेख किया गया है। १५. पन्द्रहवें उदय में सम्यक्त्व-आरोपण, द्वादश व्रतारोपण, श्रावक की
ग्यारह प्रतिमाओं की उद्वहन-विधि, सप्त उपधान-तपश्चर्या तथा उपधान में की जाने वाली मालारोपण की विधि, आदि का वर्णन किया गया है। इसी उदय में परिग्रह-परिमाण का टिप्पण तैयार करने तथा गृहस्थ की अहोरात्रि की चर्या विधि भी उल्लेखित है, जिसमें अर्हत्-पूजाविधि का विस्तृत वर्णन करते हुए लघुस्नात्र-विधि, दिक्पाल एवं ग्रहों की पूजाविधि, लघु उपधान, नंदी की सपना,
आदि की आवन्तर विधियों का भी उल्लेख किया गया है। १६. सोलहवें उदय में मृत्यु से पूर्व की आराधना-विधि का उल्लेख किया
गया है। इस विधि के अन्तर्गत-उत्तमार्थ (संलेखनाव्रत) की आराधना, चतुःशरण (चतुःस्मरण), क्षमापना, अन्त्यसंस्कार, आदि के
विधि-विधान गृहस्थों को लक्ष्य में रखकर बताए गए हैं। (ब) मुनि के सोलह संस्कार -
आचारदिनकर में सत्रह से लेकर बत्तीस तक के उदयों में मुनि के सोलह संस्कारों की चर्चा की गई है। इस विभाग में उन्होंने ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करने की विधि से लेकर मुनि-जीवन के अन्तिम छोर पर की जाने वाली अंतिम संलेखना-विधि का वर्णन किया है। इन सोलह उदयों में वर्णित संस्कारों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है -
१. सत्रहवें उदय में ब्रह्मचर्यव्रत की दुष्करता का प्रतिपादन करते हुए
ब्रह्मचर्य-व्रत धारण करने की विधि प्रतिपादित की गई है। २. अठारहवें उदय में क्षुल्लकदीक्षा-विधि का उल्लेख किया गया है,
साथ ही क्षुल्लक द्वारा करणीय विधि-विधानों का निर्देश दिया गया
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