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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
तथा यक्ष-यक्षिणी, श्रुतदेवता, सोलह विद्यादेवियों, दस दिक्पाल, नवग्रह एवं ब्रह्मशान्ति-यक्ष, आदि के स्वरूप एवं आयुधादि का वर्णन है। श्वेताम्बर - परम्परा में केवल मन्दिर, मूर्तिपूजा, आदि विधि-विधान को लक्ष्य में रखकर लिखा जाने वाला यह प्रथम ग्रन्थ है।
संवेगरंगशाला
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इस कृति " के रचनाकार बुद्धिसागरसूरि के शिष्य जिनचन्द्रसूरि हैं। इस ग्रन्थ का श्लोक - परिमाण १००५४ है । इस कृति का रचनाकाल बारहवीं शती का प्रारम्भ (वि.स. - ११२५) है । इस ग्रन्थ में समाधिमरण का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, साथ ही समाधिमरण सम्बन्धी स्थानक भी दिए गए हैं। समाधिमरण सम्बन्धी तुलनात्मक अध्ययन में यह ग्रन्थ भी उपयोगी है।
यतिजीतकल्प
इस कृति के रचनाकार धर्मघोषसूरि के शिष्य और २८ यमकस्तुति के प्रणेता सोमप्रभसूरि हैं। इसमें ३०६ गाथाएँ हैं। इसमें श्रमणों के आचार का निरूपण है। इस कृति का रचनाकाल सम्भवतः १३वीं शती से पूर्व रहा होगा, क्योंकि देवसुन्दरसूरि के शिष्य साधुरन ने वि.स. १३५६ में इस पर वृत्ति लिखी थी, जो कि ५७०० श्लोक परिमाण है। इस कृति का उल्लेख हमें जैन साहित्य का बृहत् इतिहास ( भाग - ४ ) में मिलता है ।
प्रवचन - सारोद्धार -
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इस कृति ' के रचनाकार देवभद्र के शिष्य सिद्धसेनसूरि हैं। यह ग्रन्थ महाराष्ट्री - प्राकृत भाषा में लिखा गया है। इस कृति का काल विक्रम की १३वीं शती है। इस ग्रन्थ में १५६६ पद्य हैं तथा इसके २७६ द्वारों में विभिन्न विषयों के साथ-साथ आचारदिनकर में वर्णित कुछ विधि-विधानों एवं विषयों का भी विवेचन हुआ है; यथा - चैत्यवंदन, वन्दनक, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान, साधु-साध्वियों के उपकरणों की संख्या, दस प्रकार के प्रायश्चित्त, दीक्षा के अयोग्य पुरुषों, स्त्रियों एवं नपुंसकों की संख्या, श्रावकों की ग्यारह प्रतिमाएँ, आर्य-अनार्य देशों के ग़मोल्लेख, आदि। इस प्रकार आचारदिनकर में वर्णित कुछ विधियों की आंशिक चर्चा हमें इस ग्रन्थ में भी मिलती है।
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संवेगरंगशाला, जिनचन्द्रसूरिकृत, सं.: मुनि हेमेन्द्रविजय, पण्डित बाबूभाई सवचंद ६५५ /अ, मनसुखभाई पोल, कालुपुर, अहमदाबाद.
प्रवचन सारोद्धार, अनु. - हेमप्रभाश्रीजी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, प्रथम संस्करण १६६६.
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