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६. जीतकल्पभाष्य
जीतकल्प के प्रणेता प्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (वि.सं. ६५० के आसपास) हैं। इस ग्रन्थ में साधु-साध्वियों के भिन्न-भिन्न अपराध-स्थान-विषयक प्रायश्चित्त का जीतव्यवहार के आधार पर निरूपण किया गया है। इसमें कुल १०३ गाथाएँ हैं, इस ग्रन्थ में दस प्रकार के प्रायश्चित्तों, यथा(१) प्रतिक्रमण ( २ ) आलोचना (३) उभय ( ४ ) विवेक (५) व्युत्सर्ग ( ६ ) तप (७) छेद (८) मूल (६) अनवस्थाप्य एवं (१०) पारांचिक का उल्लेख है । आचारदिनकर के प्रायश्चित्त - विधि में भी हमें प्रायश्चित्त के इन्हीं दस प्रकारों का उल्लेख मिलता है।
उपर्युक्त आगम-ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य आगम-ग्रन्थों में भी आचारदिनकर में वर्णित विषयों के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु वे मात्र सूचनारूप हैं, उनके विशिष्ट विधि-विधान उन आगम-ग्रन्थों में नहीं हैं, जैसे- आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठवें अध्ययन में हमें समाधिमरण के सम्बन्ध में कुछ उल्लेख मिलते हैं। अन्तकृत्दशांग में हमें कनकावली, रत्नावली, आदि प्रमुख तप की विधि का उल्लेख मिलता है। औपपातिकसूत्र एवं राजप्रश्नीयसूत्र में जातकर्म संस्कार, चन्द्र-सूर्य-दर्शन, धर्मजागरण (षष्ठीजागरण), नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णवेध, चूलोपनयन, गर्भाधान, आदि संस्कारों के नामोल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार कल्पसूत्र में जातकर्म, सूर्य-चन्द्र-दर्शन, षष्ठी - संस्कार, शुचिकर्म - संस्कार, नामकरण, आदि संस्कारों के नामोल्लेख मिलते हैं। ज्ञाताधर्मकथा में जातकर्म, सूर्य-चन्द्र-दर्शन, षष्ठी - जागरण, नामकरण, आदि संस्कारों के नामोल्लेख एवं प्रव्रज्या - विधि-सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं। बृहत्कल्पसूत्र में साधु-साध्वी के आचारधर्म से सम्बन्धित विधि-निषेधों का वर्णन किया गया है। व्यवहारसूत्र में मुनि - आचार सम्बन्धी विधिनिषेधों के साथ ही आचार्य, उपाध्याय, आदि पदस्थापन सम्बन्धी उल्लेख भी मिलते हैं। साथ ही निशीथ, आदि छेदसूत्रों में मुनि - आचार में लगने वाले विभिन्न दोषों और उनके प्रायश्चित्तों का भी उल्लेख पाया जाता है। महानिशीथसूत्र में उपधान, जिनपूजा, आदि का उल्लेख मिलता है।
इनके अतिरिक्त प्रकीर्णक-साहित्यों, आराधनाकुलक, आलोचनाकुलक, मिथ्यादुष्कृतकुलक (प्रथम एवं द्वितीय), आत्मविशोधीकुलक, चतुःशरणप्रकीर्णक, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, आराधनाप्रकरण, मरणविभक्ति, संस्तारकप्रकीर्णक, भक्तपरिज्ञा, आदि में भी समाधिमरण सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं।
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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
जीतकल्पसूत्र, भाई श्री बबलचंद्र केशवलाल मोद, हाजापटेल की पोल, अहमदाबाद.
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