Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१५ इन दसमेंसे पाँचका नाम उल्लेखनीय है, वे हैं-अणु, द्रुह्य , तुर्वक, यदु तथा पुरु। पुरु सरस्वती के तट पर रहते थे, अतः वे भरतोंके पड़ौसी थे। सुदासका पिता अथवा पितामह दिवोदास था। तुर्वशों, यदुओं और पुरुओंके साथ उसका युद्ध हुआ था। किन्तु उसका सबसे बड़ा शत्रु दास शम्बर था, उसके साथ दिवोदासका लगातार युद्ध होता रहा। पणियों, पारावतों
और बिसयों के साथ भी उसका युद्ध हुआ। दिवोदास भारद्वाज पुरोहितोंके वंशका संरक्षक था। ऐसा प्रतीत होता है कि दास और पणि सम्भवतया मूलनिवासी थे, जिनसे प्रत्येक आर्य राजाकी लड़ाई हुई। ऋग्वेदमें पुरुओंका उल्लेख अनु, द्रुह्यु , तुर्वश और यदुओंके साथ पाया जाता है। __पुरु लोग यद्यपि युद्ध में सुदाससे हार गये तथापि ऋग्वेदके कालमें पुरु एक बड़ी शक्तिशाली जाति थी। पुरु राजाओंकी असाधारण लम्बी सूची पुरु जातिके महत्त्वको सूचित करती है। पुरुओंके मुख्य शत्रु भरत लोग थे। सम्भवतः उन्होंने ही उन्हें सिन्धु क्षेत्रसे हटाया था। ऋक् ( ७-८-४ ) में पुरुओंको जीतनेके उपलक्ष्यमें भरतोंके अग्निहोत्र करनेका निर्देश है। पुरुओंका एक राजा पुरुकुत्स था और उसके पुत्रका नाम त्रसदस्यु था। दस राजाओंके युद्धमें पुरुकुत्स मारा गया ! ऋग्वेदकी ऋचाओंमें आदिवासियोंके ऊपर पुरुओंकी विजयका उल्लेख मिलता है। ___ ऐसा अनुमान किया जाता है कि बादको पुरु लोग अपने पूर्व विरोधी भरतोंमें मिल गये और फिर दोनों जन कुरुओंमें मिल गये, क्योंकि उत्तरकालमें वैदिक परम्परासे पुरुओंका नाम लोप हो जाता है। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं जो पुरुओंको इक्ष्वाकु सिद्ध करते हैं। शतपथ ब्राह्मण (८,५-४-३) के अनुसार
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