Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१३.
संग्रह विभिन्न कालों में किया गया है और उसके मूलमें पुरोहित वर्ग में प्रचलित धार्मिक परम्पराको सुरक्षित रखनेकी भावना है । वेदका अन्तिम संकलन वेदव्यासने किया था । ऋग्वेदकी ऋचाओं का अधिकांश भाग वैदिक देवताओंकी स्तुतियों और प्रार्थना से सम्बद्ध है । ऐसी ऋचाओं की संख्या, जो वैदिक देवताओं से सम्बद्ध नहीं हैं, कठिनतासे चार दशक से अधिक होंगी । इन ऋचाओंमें, मुख्यतया प्रथम और दसवें मण्डलमें जो दानस्तुतियाँ हैं, उनमें कुछ जातियों, स्थानों और राजाओं तथा ऋषियों के नाम आते हैं, जिनमें रचयिताने उनकी उदारता की प्रशंसा की है । किन्तु ये दानस्तुतियाँ उतनी प्राचीन नहीं मानी जातीं ।
भौगोलिक स्थिति
वेदों में सप्तसिन्धव देशकी ही महिमा गाई गई है । यह देश सिन्धु नदीसे लेकर सरस्वती नदी तक था । इन दोनों नदियोंके बीच में पूरा पंजाब और पूरा काश्मीर आजाता है । कुम्भानदीका नाम भी आता है, जिसे आजकल काबुल कहते
। इससे प्रतीत होता है कि अफगानिस्तानका काबुल नदीवाला भाग भी आके देशमें था ।
सप्तसिन्धव देशकी सातों नदियोंके नाम थे - सिन्धु, विपाशा (व्यास), शतद्र (सतलज), वितस्ता (झेलम), असिक्की ( चनाव), परुष्णी (रावी) और सरस्वती । इन्हीं सात नदियोंके कारण इस देशको सप्तसिन्धव कहते थे । सरस्वतीके पास ही दृषद्वती थी। मनुस्मृति में (२, ७) में कहा है कि 'सरस्वती और दृषद्वती देवनदियाँ हैं, इनके बीच देवनिर्मित ब्रह्मावर्त देश है ।'
ऋक़ १०-७५-५ में गंगा यमुनाका भी नाम आया है. परन्तु यह केवल नामोल्लेख है । इससे इतना ही प्रमाणित होता है कि
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