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विषय
चतुःषष्टितम सर्ग
भगवान नेमिनाथ विहार करते-करते पल्लव देशमें पहुँचे। वहां पाण्डवोंने उनसे अपने भवान्तर सुने और दीक्षा लेकर घोर तप किया
पंचषष्टितम सर्ग
पाण्डवों की तपस्या तथा उपसर्गका वर्णन | बलदेव सौ वर्ष तक तपकर ब्रह्म स्वर्ग में देव
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हुए पूर्व स्नेहसे प्रेरित हो बलदेवका जीव कृष्णको सम्वोधन के लिए बालुकाप्रभा गया । भगवान् मोक्ष पधारे
पृष्ट
७८४-७९७
षट्षष्टितम सर्ग
जरतकुमारसे यादव वंशकी परम्परा चली। ग्रन्यके अन्तमें भगवान् महावीरके निर्वाणका प्रसंग या दीपावलीके प्रचलित होनेका वर्णन तथा आचार्य परम्पराका विशद वर्णन
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पृष्ठ
७९८-८०३
८०४-८११
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