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विषय सूची
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विषय पृष्ट विषय
पृष्ट यधिष्ठिर आदि पाण्डवोंके बीच होनेवाले प्रद्युम्नका द्वारिका आना और तरह-तरहकी संघर्षका वर्णन
५३८-५४१ अद्भुत चेष्टाएँ दिखाना लाक्षागृहमें आग लगवा देनेसे पाण्डव अपनी
अष्टचत्वारिंशत्तम सर्ग माता कुन्तीके साथ अज्ञात रूपसे बाहर निकल गये और अनेक जगह भ्रमण करते सत्यभामाके सुभानु और जाम्बवतीके शम्ब रहे । अन्त में माकन्दी नगरीके राजा द्रुपदकी
नामक पुत्रको उत्पत्ति हुई। सुभानु और पुत्री द्रौपदीको स्वयंवरमें अर्जुनने प्राप्त किया शम्बकी लीलाएँ सबका मन मोहती थीं। इसी और युद्धमें विरोधी राजाओंको परास्त कर प्रसंगमें वसुदेवने अपनी पूर्व कथा कही । ५६९-५७१ प्रकट हुए। सबके साथ हस्तिनापुरमें प्रवेश यदुवंशके कुमारों का वर्णन
५७१-५७४ कर सुखसे रहने लगे
५४१-५५०
एकोनपश्चाशत्तम सर्ग षट्चत्वारिंशत्तम सर्ग
कृष्णकी छोटी बहनकी सुन्दरता और पाण्डव दुर्योधनके साथ जुआ खेले और
तपस्याका वर्णन । इसी प्रसंगमें मनिराजने अपना सब राज-पाट हारकर बारह वर्ष तक
उसके भवान्तरका वर्णन किया ५७५-५८० अज्ञातवासके लिए निकल पड़े। इसी
विन्ध्याटवीमें उसे सिंहने खा लिया सिर्फ तीन अज्ञातवासके समय विराट नगरमें द्रौपदीके
अंगलियाँ बचीं। उनमें त्रिशूलकी कल्पना ऊपर कुदृष्टि करनेपर भीमसेनने कीचककी
कर लोग उसे दुर्गाके नामसे पूजने लगे ५८०-५८२ अच्छी मरम्मत की जिससे वह मुनि होकर
पञ्चाशतम सर्ग तपस्या करने लगा। कीचकके सौ भाइयोंने
द्वारिकामें यादवोंके बढ़ते वैभवको सुन जरातेज दिखाया तो उन्हें जलती चितामें भस्म सन्धका क्रोध भड़क उठा और वह युद्ध करनेकर दिया। कोचक मुनिने केवलज्ञान प्राप्त के लिए उद्यत हो गया। दोनोंने एक दूसरेके कर निर्वाण प्राप्त किया
प्रति अपने-अपने दूत भेजे । तदनन्तर युद्ध प्रारम्भ हुआ।
५८३-५९२ सप्तचत्वारिंशत्तम सर्ग
एकपञ्चाशत्तम सर्ग कीचकका उपद्रव शान्त कर पाण्डव हस्तिना
यद्धका अवान्तर वर्णन । राजा रुधिरका पत्र. पुर वापस आ गये। धीरे-धीरे दुर्योधनका
वीर हिरण्यनाभ मारा गया जिससे एक दुर्भाव फिरसे बढ़ने लगा इसलिए वे पुनः
ओर हर्ष और दुसरी ओर विषाद छा गया ५९३-५९६ दक्षिणकी ओर चले गये। विन्ध्य वनमें
द्वापञ्चाशत्तम सर्ग तपस्वी विदुरसे युधिष्ठिरको भेट हुई। क्रम
युद्ध अपने पूर्ण उत्कर्ष पर पहुँच गया और क्रमसे पाण्डव द्वारिका पहुँचे और समुद्रविजय
श्रीकृष्णके द्वारा जरासन्ध मारा गया ५९७-६०३ आदिसे मिलकर प्रसन्न हुए
५५७-५५८
त्रिपञ्चाशत्तम सर्ग युधिष्ठिर आदिको लक्ष्मीमती आदि कन्याएँ प्राप्त हुई
कृष्ण नारायणके रूपमें प्रसिद्ध हए। अनेक प्रद्युम्नकी चेष्टाओंका वर्णन
५५८-५६०
विद्याधरोंने वसुदेवके साथ आकर कृष्णको प्रद्युम्नकी शोभा देख कालसंवरकी स्त्री
नमस्कार किया। कृष्ण विजयी हुए ६०४-६०८ कनकमाला कामसे विह्वल हो गयी और
चतुःपञ्चाशत्तम सर्ग प्रद्यम्नको रिझानेका प्रयत्न करने लगी। ५६०-५६३ नारदने द्रौपदीसे रुष्ट होकर अपनी प्रतिशोधकी
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