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किसभिी लेखककी शंकावाली एकभी बातको छोडी नहीं है। इस लिये इस ग्रंथमें वादी और प्रतिवादी दोनोंके सब पूरे लेखोंको,और आगम पंचांगीके सर्व शास्त्र पाठोंको पक्षपात रहित होकर न्याय बुद्धिसे संपूर्ण वांचने वाले सत्यके अभिलाषियोंको अवश्यही जिना. शानुसार सत्य बातोंकी परीक्षा स्वयंही हो जावेगी. अल्पसंसारी आत्मार्थियोंके लिये तो इस ग्रंथमें लिखे मुजब इतना खुलासा बहुतही है. मगर दीर्घ संसारी भारी कौकी तो बातही अलग है.
४०-जिनाज्ञाकी दुर्लभता। जैसे-पूर्व दिशा तरफ कोई अपना अभीष्ट नगर होवे उसमें जा नेकेलिये थोडा २ भी पूर्व दिशा तरफ चलनेसे अवश्यही उस नग. रकी प्राप्ती होती है, मगर पूर्वदिशा छोडकर पश्चिम दिशामें बहुत २ चले तो भी वो नगर दूरदूरही जायगा, मगर नजदिक कभी न. ही आसकेगा. इसी तरह जिनाशानुसार थोडार धर्मकार्य किया हु. आभी मुक्ति रूपी अपना अभीष्ट नगरमै आत्माको पहुचाने वाला हो ता है, परंतु जिनाज्ञा विरुद्ध बहुतरतपश्चर्यादि धर्म ध्यान व्यवहार में करें; तो भी तत्त्वदृष्टिसे शून्य होनेसे मुक्तिनगरमें पहुंचान वाला नहीं होता. किंतु संसार बढाने वालाही होता है । और वर्तमानिक आग्रही लोगोंकी भिन्न २ प्ररूपणा होनेसे भोले भव्य भद्र जीवोंकों जिनाशानुसार सत्यबातकी प्राप्ति होना अभी बहुत मुश्किल है.यही दशा पर्युषणासंबंधी विवादमेभी हो गई है । इसलिये भव्यजीवोंकों जिनाशानुसार पर्युषणा जैसे अतीव उत्तम पर्वके आराधन होनेकी प्राप्ति होनेकेलिये आगम पंचांगी सम्मत,व सर्व लेखकोंकी शंकाओं का समाधान पूर्वक मैंने इस ग्रंथमें इतना लिखा है। उसको अपने गच्छका आग्रह छोडकर तत्त्वदृष्टिसे पढनेवालोंको अवश्यही जिना. शानुसार सत्यबातकी प्राप्ति हो जावेगी.
- और मनुष्य भवमें शुद्ध श्रद्धा पूर्वक जिनाबानुसार धर्म कार्य करनेकी सामग्री मिलना अनंतकालसे अनंतभवो भी महान दुर्लभ है,वारंवार ऐसा सुअवसर कभी नहीं मिलसकता. इसलिये गच्छका पक्षपात, दृष्टिराग, लोकलज्जाकी शर्म, विद्वत्ताका झूठा अभिमान, जिनाशाविरुद्ध अपने गच्छपरंपराकी रूढी, व बहुत समुदायकी दे. खादेखीकी प्रवृत्ति वगैरह बातोको छोडकर जिनामानुसार सत्यग्र. हण करनेमेही आत्मसाधन होनेसे. नरकादि ४ गतियोंके जन्म-मरण-गर्भावास वगैरह अनंत दुःखोंसे छुटना होताहै, इसलिये, जिना.
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