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विषय
केवलिनि द्रव्यश्रुतसद्भावसिद्धिः
ध्येयमित्युक्तिविभावनम् . वचनविभागवैविध्याख्यानम्
चारित्रविषयक भावभाषा के दो भेद
अपवादतो मृषामिश्रभाषणानुज्ञाऽऽविष्कारः
पञ्चमः स्तबकः
(विनयशिक्षाधिकारः)
मतभेदेन विनयस्वरूपप्रकाशनम् कालशङ्कितभाषा बोलना निषिद्ध है
नक्षत्र आदि का आपवादिक वचन
अन्यनिश्चित भाषा के कथन की पद्धति
देश शंकित भाषा अवक्तव्य अवक्तव्यषड्विधवचनप्रकाशनम् अनवधृत भाषा अवाच्य है.
उपघातक भाषा त्याज्य है
संगादिदूषित भाषा अनुज्ञात नहीं है
गोत्रसप्तकाभिधानम्
मूलनाम या गोत्र से आमन्त्रण करना चाहिए. पृच्छादौ साधारणवचनप्रयोगानुज्ञा कल्पान्तरबीजावेदनम् जनपदव्यवहारसत्ययोरपि कदाचिदननुमतत्वा
ख्यानम्
पंचेन्द्रिय में विपरीतलिङ्गवाचक भाषा व्यवहार सत्य होने से अत्याज्य-पूर्वपक्ष पंचेन्द्रिय में विपरीतलिंगघटित भाषा
त्याज्य
उत्तरपक्ष
चूर्णिटीकावचनविरोधपरिहारः अवधेयमित्युक्तिव्याख्यानम् .
मतभेदेन साङ्केतिकपदस्पष्टीकरणम् अन्वयव्यतिरेक से जातिपदघटित
शब्दप्रयोग उपादेय..
धर्मविरुद्ध और लोकविरुद्ध वचन निषिद्ध है अवक्तव्यभाषादोषावेदनम् .
, निष्पाद्य क्रिया के सूचक विशेषण का प्रयोग
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नामुनासि
अधिकरणादि दोष से मुक्त वचन प्रयोक्तव्य
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विषय
प्रासाद-परिघादिपदानामन्वाख्यानम् लाघवोत्पादकवचनस्याऽप्रयोक्तव्यत्वम्
देवादि को कुपित करनेवाली भाषा परिहार्य पक्वादिपदार्थदर्शनम्.
औषधी में पक्वादि अर्थ योजना
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. २९२ स्वमतिकल्पितशुद्धेरप्रामाण्यप्रतिपादनम् संखडी - स्तेनादिविषयक वचनविधि
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. २९५ व्यवहारशुद्धि के बिना सिर्फ आशयशुद्धि से दोषमुक्ति नहीं है.
अप्रीतिकर वचन प्रयोक्तव्य नहीं है.
जरूरत हो तब शास्त्रीय सांकेतिक शब्द
का प्रयोग कर्तव्य है नदीविषयक भाषणविधि प्रवचनापभ्राजना-प्रद्वेष
बोधिदुर्लभतादिदोषापादकवचनानां
फलविषयक वाग्विधि
औषधीविषयक वचनविधि
साक्षादर्थतः प्रतीयमानत्वविशेषावेदनम् .
व्यवहारतः सत्यभाषा भी दोषयुक्त हो तो त्याज्य है
साक्षात् अधिकरणदोषावह वचन ही निषिद्ध है शुद्धाशयप्रयुक्तवचनानां कदाचिद्दोषजननेऽपि निर्जराहेतुत्वसिद्धिः
विधिविशुद्ध परिणाम से शास्त्रोक्त विधि के अनुसार कहा गया वचन नितान्त निर्दोष औषधीनिर्देशे मतान्तरप्रदर्शनम्. औषधीविषयक वक्तव्य वचन
परिहार्यत्वम्.
दोषनिरासपराणां प्रयोजनसाधकवचनानां
वक्तव्यत्वम् ... सुकृत आदि वचनविधि ब्रह्मचर्य-स्नेहस्वरूपप्रदर्शनम् .
व्यापारविषयक अवाच्य वचन
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सावद्यनिरवद्यवचनानभिज्ञस्य देशनानधिकारित्वम् .. ३२१ अप्रत्यादिकरवचनानां सत्यत्वेऽपि त्याज्यत्वम्
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अभ्युच्चयकथन त्याज्य है
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