Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू. ५ भाषाकारणादिनिरूपणम्
२९७ सता ८ आख्यायिकानिःसृता ९ औपघातिकानिःसता १९-'क्रोधो मानं माया लोभः, प्रेम तथैव द्वेषश्च । हास्यं भयम् आख्यायिकम् औपघातियनिःसता दशमी ॥१॥ अपर्याप्तिका खलु भदन्त ! कतिविधा भाषा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता ? तद्यथा-सत्यामृषा, असत्यामृषा च । सत्या मृषा खलु भदन्त ! भाषा अपर्याप्तिका कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! दशविधा प्रज्ञप्ता, से निकली हुई (माणनिस्सिया) मान से निकली हुई (मायानिस्सिया) माया से निकली हुई (लोहनिस्सिया) लोभ से निकली हुई (दोसनिस्सिया) द्वेष से निकली हुई (हासणिस्सिया) हास्य से निकली हुई (भयणिस्सिया) भय से निकली हुई (अक्खाइया णिस्सिया) कहानी से निकली हुई (उवघाइयणिस्सिया) उपघात से निकली हुई ___(कोहे माणे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य) क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, तथा द्वेष (हास भए अक्खाइथ उवघाइय णिस्सिया दसमा) हास्य, भय, आख्यायिका और दशवीं उपघात से निकली हुई भाषा ॥१॥ __ (अपज्जत्तिया णं भंते ! काविहा भासा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! अपर्याप्ति का भाषा कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सच्चा मोसा) सत्या मृषा (असच्चा मोसा य) और असत्या मृषा ___ (सच्चा मोसा णं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! सत्या मृषा अपर्याप्ति का भाषा कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दश प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार निseी (माया णिस्सीया) भायाथी निधी (लोहनिस्सिया) aमथी निक्षी (पेज्ज निस्सिया) प्रेमथा निणेसी (दोस निस्सिया) द्वेषथा निणी (हासणिस्सिया) हास्यथी निगेली (भयणिस्सिया) भयथी निसी (अक्खाइया णिस्सिया) वातथी निसी (उवघाइय णिस्सिया ઉપઘાતથી નિકળેલી
(कोहे माणे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य) ओध, मान, माया, साल, प्रेम तथा ६१ (हासभये अक्खाइय उवधाय णिस्सिय दसमी) हास्य, भय, माध्यायि: मने शभी ઉપઘાતથી નિકળેલી ભાષા છે ૧ છે
(अपज्जत्तिया गं भंते ! कइविहा भासा पण्णत्ता) मावन् ! "पर्याHिt मा। 326 प्रसारनी ही छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) गौतम ! मे ४२नी ४डी छ (तं जहा) ते २॥ ४॥२ (सच्चा मोसा) सत्य भूषा (असच्चा मोसा य) मने असत्या भूषा
(सच्चामोसाणं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?) भगवन् ! सत्या भृ५। २५५ति मा ३८ प्रा२नी ही छ ? (गोयमा दसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! ६॥ ४२नी ४ी छ (त जहा) ते मा प्रकारे (उप्पण्णमिस्सया) अपन मिश्र (बिगय
प्र०३८
श्री प्रशान। सूत्र : 3