Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेपबोधिनी टीका पद १५ सू० ६ अनगारविषयकवर्णनम्
___६४७ असंज्ञियूतास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति, आहरन्ति, तत्र खलु ये ते 'ज्ञिभूतास्ते द्विविधाः प्रज्ञताः, तद्यथा-उपयुक्ताश्च, अनुपयुक्ताच, तत्र खलु ये ते अनुपयुक्तास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति, आहरन्ति, तत्र खलु ये ते उपयुक्तास्ते खलु जानन्ति पश्यन्ति आहरन्ति, तत् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते अस्त्येके न जानन्ति न पश्यन्ति आहरन्ति, अस्त्येके जानन्ति पश्यन्ति आदरन्ति, वानव्यन्तरज्योतिष्का यथा नैरयिकाः, वैमानिकाः खलु भदन्त ! तान् निर्जरापुद्गलान् किं जानन्ति पश्यन्ति आहरन्ति ? यथा मनुष्याः, नबरं वैमानिका द्विविधाः असण्णिभूया ते णं न जाणंति, न पासंति) उनमें जो असंज्ञीभूत है, वे नहीं जानते, नहीं देखते हैं (आहारेंति) आहार करते हैं (तत्थ णं जे सण्णिभूया ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो संज्ञीभूत है, वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (उच उत्ता य अणुव उत्ता य) उपयोग से युक्त और उपयोग से रहित (तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता) उनमें जो उपयोग रहित हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति) वे नहीं जानते, नहीं देखते हैं (आहारेति) मगर आहार करते हैं (तत्थ णं जे ते उवउत्ता) उनमें जो उपयोग युक्त हैं (ते जाणति पासंति आहारेति) वे जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं (से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (अत्थे. गइया न जाणंति, न पासंति, आहारैति) कोई-कोई नहीं जानते, नहीं देखते, मगर आहार करते हैं (अत्थेगइया जाणंति पासंति, आहारति) कोई-कोई जानते-देखते हैं और आहार करते हैं।
(वाणमंतरजोइसिया जहा नेरइया) वानव्यन्तर और ज्योतिष्क, नारकों के समान (वेमाणियाणं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेति?) (तत्थणं जे ते असण्णिभूया ते गं न जाणंति न पासंति) तमा २ अशी भूत छ, तेस। लता मत नथी (आहारे ति) पाहा२४३ छ (तत्थ णं जे सण्णिभूया से दुविहा पण्णत्त!) तेयामा रेसा सज्ञी सूत छे, ते मे २ना या छ (तं जहा) ते ४२ (उवउत्ता य अणुवउत्ता य) 6५ोथी युत भने उपयोगयी हित (तत्य णं जे ते अणुच उत्ता) तमामा 6पया हित (ते णं न जाणंति न पासंति) तेमाल नथी, हेयता ५] नथी (आहारेति) ५५ माडा२ ४२ छ (तस्थणं जे ते उवउत्ता) तयामा २०५।५ युरत छ (ते जाणति पासंति आहरं ति) तेयो त छ, हेथे छ भने माहा२ ४३
(से एएटेणे गोयमा ! एवं बुच्चइ) मे तुथी हे गौतम ! मे उपाय छ (अत्येगइया न जाणंति न पासंति, आहारे ति) अ नथी यता, नयी मिता, ५९ माडार ४२ छ (अत्थेगइया जाणंति, पासंति आहारे ति) and-हेने छ भने माहा२ ४३ छ
(वाणमंतरजोइसिया जहा नेरइया) पानव्य तर मन न्याति, 300 समान (वेमाणियाणं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेति १) लापन्
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩