Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 831
________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १६ स. २ जीवप्रयोगनिरूपणम् ओगे १५' तैजसकार्मणशरीरकायप्रयोगस्तावद् विग्रहगतौ समुद्घाताबस्थायां वा सयोगिकेयलिन स्तृतीयचतुर्थपञ्चमसमयेषु बोध्यः, तैजसस्य च कार्मणेन सहाव्यभिचारित्वाद् युगपत् तयोरत्र ग्रहणं कृतम् । मूलम्-"जीराणं भंते ! कइविहे पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्ण. रसविहे पण्णत्ते, सच्चमणप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पओगे, नेरइयाणं भंते ! कइविहे पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! एकारसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे जाव असच्चामोसवयप्पओगे बेउ. वियसरीरकायप्पओगे वेव्वियमीससरीरकायप्पओगे, कम्मासरीरकायप्पओगे, एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं, पुढविकाइयाणं पुच्छा, गोयमा! तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरकायप्प. ओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे कम्मासरीरकायप्पओगे य, एवं जाय वणस्सइकाइयाणं, णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे पओगे पपणते, तं जहा-ओरालियसरीरकायप्पओगे ओरालियमीससरीरकायप्पओगे य, वेउव्विए दुविहे कम्मासरीरकायप्पओगे य, बेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा! चउठिवहे पोगे पण्णत्ते, तं जहा-असच्चामोसवइप्पओगे ओरालियसरीरकायप्पओगे, ओरालियमीसप्तरीरकायप्पओगे, कम्मासरीरकायप्पओगे, एवं जाव चउरिदियाणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा! तेरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे मोसमणपर भी आहारक की प्रधानता होने के कारण आहारकमिश्र का ही व्यवहार होता है, औदारिक के नाम से व्यवहार नही होता। यह आहारकमिश्रशरीरकाययोग हुआ। कार्मणशरीरकाययोग विग्रहगति में होता है तथा केवलीसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में होता है । तैजस और कार्मण दोनों सहचर हैं, अतः एकसाथ दोनों का ग्रहण किया गया है ॥१॥ ઔદરિકના નામથી વ્યવહાર નથી થતું, આ આહારક મિશ્ર શરીરકાય યોગ થયો. કામણ શરી, કાય કેગ વિગ્રહ ગતિમાં થાય છે તથા કેવલિ સમુઘાતના ત્રીજા, ચેથા અને પાંચમા સમયમાં થાય છે. તેજસ અને કામણ અને સહચર છે અતઃ એક સાથે બનેનું ગ્રહણ કરેલું છે || ૧૧ છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩

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