Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 955
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद 16 सू० 7 सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् पर्यागतानाम् परिपाकापगतानां बन्धनाद् वृन्तभागाद् विप्रयुक्तानां-तिच्युतानां निर्व्याघातेननिर्व्याबाधेन अधः-अधस्ताद् विश्रसया-स्वभावेन गतिः प्रवर्तते सा एषा बन्धनविमोचनगतिः प्रज्ञप्ता, परमप्रकृतमुपसंहरनाह-'सेतं विहायोगती' सा एषा-पूर्वोक्तस्वरूपा सप्तदशविधा विहायोगतिः प्रज्ञप्ता, इति 'पण्णवणाए भगवइए पभोगपयं समत्तं' इतिश्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचकपश्चदशभाषाकलित-ललितकलापालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्री-शाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य'-पदविभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारी जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलाल-व्रतिविरचितायां श्री प्रज्ञापनासूत्रस्य प्रमेयबोधिन्याख्यायां व्याख्यायां ___ भगवत्यां प्रयोगपदं षोडशं समाप्तम् // 16 // पृथक् हो गए हैं, कोई रुकावट न हो तो, स्वभाव से ही अधोगति होती है, वह बन्धनविमोचनगति कहलाती है / __ यह विहायोगति सतरह प्रकार की कही गई। भगवती प्रज्ञापना में सोलहवां प्रयोगपद समाप्त / श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालबतिविरचित प्रज्ञापना सूत्र की प्रमेयबोधिनी व्याख्या में सोलहवां प्रयोगपद समाप्त // 16 // ન હોય તે સ્વભાવથી જ અધોગતિ થાય છે, એ બન્ધનવિમોચન ગતિ કહેવાય છે. આ વિહગતિ સત્તર પ્રકારની રહેલી છે. શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજય શ્રી ઘાસીલાલ વતિ વિરચિત પ્રજ્ઞાપના સૂત્રની પ્રમેયબોધિની વ્યાખ્યાનું સોળમું પ્રગ૫ર સંપૂર્ણ 16 શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : 3

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