Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् मण्डकगति येत् खलु मण्डूकः उत्प्लुत्य गच्छति, सा एषा मण्डूकगतिः ६, तत्का सा नावा. गतिः ? नावागति यत् खलु नावा पूर्ववैतालाद् दक्षिणवैतालं जलपथेन गच्छति, दक्षिणवैतालावा अपरवैतालं जलपथेन गच्छति सा एषा नावागतिः ७, तत् का सा नयगतिः ? नय. गति यत् खलु नैगमसंग्रहव्यवहारऋजुसूत्रशब्दसमभिरूढेवंभूतानां नयानां या गतिः, अथवा सर्वनया अपि यम्इच्छन्ति, तत् सा नयगतिः ८, तत् का सा छायागतिः ? छायाति यत् खल्लु हयच्छायां वा गजच्छायां वा नरच्छायां वा, किन्नरच्छायां वा, महोरगच्छायां वा गन्धर्वच्छायां गच्छति से तं मंडूयगती) मेढक जो उछलकर चलता है, वह मंडूकगति है।
(से किं तं णावागति ? २) नौकागति क्या है ? (जं णं णावा पुचयेता. लीओ दाहिणवेयालिं जलपहेणं गच्छति) जो कि नौका पूर्व वैतालीतट से दक्षिणवैताली को जलमार्ग से जाती है (दाहिणवेतालीओ वा अवरचेतालिं जलपहेणं गच्छति) अथवा दक्षिणवैतालीतट से पश्चिमवैताली को जलमार्ग से जाती है (से तं णावागती) यह नौकागति हुई।
(से किं तं णयगती१२) नयगति किसे कहते हैं (जंणं णेगमसंगहववहारउज्जसुयसद्दसमभिरूढएवंभूयाणं नयाणं) जो कि नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋतुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नयां की(जा) जो(गती) गति(अहवा) अथवा (सव्वयणा वि) सभी नय (जं इच्छंति) जो मानते हैं (से तं जयगती) वह तयगति है।
(से किं तं छायागती ? २) छायागति क्या है ? ( णं यछायं वा) अश्व की छाया को (गयछायं वा) या हाथी की छाया को (नरछायं वा) या मनुष्य की छाया को (किन्नर छायं वा) या किन्नर की छाया का (महोरगछायं वा) अथवा महोरग की छाया को (गंधव्वछायं वा) गंधर्व की छाया को (उसहछायं वा) या
(से कि तं मंडूयगती) भडू गति ने छे ? (जं णं मंडओ किडित्ता गच्छति से तं मंड्यगती) 328छीन याले छ, ते म ति छ
(से कि तं णावागत1) नोति शु छ ? (जं णं णावा पुव्व वेतालीओ दाहिणवेयालि जलपहेण गच्छति) म नौ। पूर्व वैतालीत२३थी इक्षिए पैसा त२५ २६ भागे जय छ(दाहिण वेतालीओ वा अवरवेतालि जलपहेण गच्छति) ११पा दक्षिण पैताली तथा पश्चिम वैताली त२५ समाथी तय छ (सेत्तं णावागती) ते नीति २४
(से कि ते णयगती ?) नयति डोने छ ? (जं णं णेगमसंगहववहार उज्जुसुय सदसमभिरूढएवंभूयाणं नयाणं) रेभ नेगम, सह, व्यवहार, गु सूत्र श६, सभाम३० मन मेो andन नयानी (जा) २ (गती) गति (अहवा) २०५१। (सव्व णया वि) मघा नय (जं इच्छंति) २ भान छ (सेत्तं णयगती) ते नयति छ
(से कि तं छायागती ? २) छायाति छ ? (जं णं हयछायं वा) घाानी छायाने गयछायं वा) हाथीनी छायान (नरछायं वा) अथवा मनुष्यनी याने (किण्णरछायं वा) मथ नरनी छायाने (महोरगछायं पा) अथवा महारानी छायाने (गंधव्वच्छायं वा)
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩