Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 843
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६सू० ३ जीवप्रयोगनिरूपणम् ८२७ आहारगसरीरकायप्पओगिणो य, कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ४, चउरो भंगा, अहवेगे य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य, कम्मगसरीरकायप्पओगी य १, अहवेगे य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य, कम्मा सरीरकायप्पओगिणो य २, अहवेगे य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य, कम्मासरीरकायप्पओगी य ३, अहवेगे य आहारगमीसासरीरका यपओगिणो य, कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य ४, चउरो भंगा, एवं चउव्वीसं भंगा” ॥ सू० ३ ॥ छाया - जीवाः खलु भदन्त ! किं सत्यमनःप्रयोगिणो यावत् किं कार्मणशरीर कायप्रयोगिणः ? जीवाः सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सत्यमनःप्रयोगिणोऽपि यावद् वैक्रियमिश्र शरीरका प्रयोगणोऽपि, कार्मणशरीर कायप्रयोगिणोऽपि १३, अथवा एकच आहारकशरीरकायप्रयोगी च १, अथवा एके च आहारकशरीरकायप्रयोगिणश्च २, अथवा एकच आहारकजीवप्रयोगवक्तव्यता शब्दार्थ - (जीवाणं भंते! किं सच्चमणप्पओगी जाव किं कम्मसरीरकायप्पओगी ?) हे भगवन् ! जीव क्या सत्यमनःप्रयोगी हैं यावत् क्या कार्मणशरीरकाप्रयोगो हैं ? (जीवा सव्वेवि ताय) जीव सभी (होज्ज सच्चमणप्पओगी बि जाव वेउच्वियमीससरीरकायपओगी वि, कम्मसरीरकायप्पओगी वि) सत्यमनःप्रयोगी भी, यावत् वैकियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी, कार्मणशरीरका योगी भी हैं (अहवेगे य) अथवा कोई (आहारगसरीरकायप्पओगा य) एक आहारकशरीरकाrप्रयोगी ( अहवेगे य आहारगसरीरकायप्प ओगिणो य) अथवा कोई बहुत आहारकशरीरकाप्रयोगी ( अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पओगी) अथवा कोई एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी ( अहवेगे य आहारगमीससरी. જીવ પ્રયોગ વક્તવ્યતા शब्दार्थ - (जीवाणं भंते! किं सच्वमणप्पओनी किं कम्मसरीरकायप्पओगी ?) हे लग पन् ! लव शु' सत्यमनःप्रयोगी छे यावत् शुं अभय शरीराय प्रयोगी छे ? (जीवा सब्वे वि ताव) मधा भवे। (होज्ज सच्चमणप्पओगी वि जाव वेडव्वियमीससरीरकायप्पओगी वि कम्मसरीरका यप्प आगी वि) सत्यभनः प्रयोगी यावत् वैडियमिश्रशरीरायप्रयेोगी पशु, अभीशु शरीराय प्रयोगी पशु छे ( अहवेगे य) अथवा (आहारग सरीरकायप्पओगी य) २४ आहार शरीराय प्रयोग ( अहवेगे य आहारगसरीरकायप्प ओगीणो य) अथवा अर्ध धा आहार शरीराय प्रयोगी ( अहवेगे य आहारगमी ससरीरकायप्पओगी) अथवा है। ये भाहार मिश्रशरीरसाय प्रयोगी ( अहवेगे य अहारगमीस सरीरका यप्पओगीणो य) अथवा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩

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