Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 861
________________ प्रबोधिनी टीका पद १६ सू. ३ जीवप्रयोगनिरूपणम् ८४५ ' अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी वि' अथवा एकच कश्चिद् द्वीन्द्रियः कार्मणशरीरकायप्रयोग अपि भवति, अथ बहुत्वविशिष्टं तृतीयं भङ्ग प्रतिपादयितुमाह - ' अहवेगे य कम्मासरीरstatuओगणोय' अथवा एकेच केचन द्वीन्द्रियाः कार्मणशरीरकायप्रयोगिणश्च भवन्ति ' एवं जाव चउरिंदिया वि' एवम् - द्वीन्द्रिया इव यावत् - त्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रियाअपि वक्तव्याः 'पंचिदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया' पञ्चेन्द्रितिर्यग्योनिका यथा नैरयिकाः प्रतिपादितास्तथा प्रतिपत्तव्याः, किन्तु - 'णवरं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि' नवरम् - नै -नैरयिकापेक्षया विशेषस्तु औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, एवम्- 'ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी वि औदारिक मिश्रशरीर का यप्रयोगिणोऽपि पञ्चेन्द्रितिर्यग्योनिका भवन्ति, तथा च वैक्रियशरीरकायप्रयोग - वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगिस्थाने औदारिकशरीरकायप्रयोगी-औदारिकमिश्रशरीरकाrप्रयोगिण वक्तव्याः एवञ्च सत्यमनः प्रयोगिप्रभृति-असत्यामृषावचः प्रयोगिपर्यन्त मष्टपदानि औदारिकसम्बन्धिपदद्वयमेलनेन दशपदानि बहुत्वविशिष्टानि सदाऽवस्थितानि के लिए कहते हैं - अथवा कोई एक द्वीन्द्रिय जीच कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होता है । अब बहुत्वविशिष्ट तीसरे भंग का प्रतिपादन करते हैं कोई बहुत से दीन्द्रिय कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं । 3 द्वीन्द्रिय जीवों के समान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रय जीवों की वक्तव्यता समझलेनी चाहिए | पंचेन्द्रिय तिर्थचों का कथन नारकों के सदृश जानना चाहिए, मगर उनमें विशेषता यह है कि वे औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं और औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगो भी होते हैं । अतएव इसको वैक्रियशरीरकायप्रयोगी और वैक्रियमिश्रशरीरकायोगी के साथ साथ औदारिकशरीरकायप्रयोगी और औदारिकमिश्र शरीर कायप्रयोगी कहना चाहिए । इस प्रकार चार तरह के मनप्रयोग और चार तरह के वचनप्रयोग, तथा वैक्रिय और वैक्रियमिश्र इसके साथ औदारिक और औदारिकमिश्र, इन दो पदों को मिलाने से बारह पद सदैव એ પ્રતિપાદન કરવાને માટે કહે છે-અથવા કોઇ એક દ્વાન્દ્રિય જીવ કાણુ શરીરકાય પ્રયાગી પણ થાય છે. હવે ખત્વ વિશિષ્ટ ત્રીજા ભગતુ' પ્રતિપાદન કરે છે. કાઈ ઘણા એ ઇન્દ્રિય કાણુ શરીરકાય પ્રયાગી પણ હાય છે. દ્વીન્દ્રિય જીવની સમાન ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીવાની વક્તવ્યતા પણ સમજવી જોઇએ. પંચેન્દ્રિય તિય ચાનુ કથન નારકોના સશ જાણવુ જોઈ એ પણ તેમાં વિશેષતા એ છે કે તે ઔદારિક શરી૨કાય પ્રયાગી પણ હાય છે અને ઔદારિક મિશ્ર શરીરકાય પ્રત્યેાગી પણ હેાય છે. તેથી જ તેમને વૈક્રિય શરીરકાય પ્રયાગી અને વૈક્રિય મિશ્ર શરીરકાય પ્રયાગની સાથે સાથે ઔદારિક શરીરકાય પ્રયાગી અને ઔદારિક મિશ્રશરીર કાયપ્રયેાગી કહેવા જોઈએ. એ પ્રકારે ચાર પ્રકારના મનઃપ્રયોગ અને ચાર પ્રકારના વચનપ્રયોગ તથ श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3

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