Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 873
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १६ सू० ४ जीवप्रयोगे त्रिकसयागनिरूपणम् ___ ८५७ कायप्रयोगी च आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च २, अथवा एकचौदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च आहारकशरीरकायप्रयोगिणश्च आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च ३, अथवा एक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च आहारकशरीरकायप्रयोगिणश्च आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च ४, अथवा एकचौदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च आहारकशरीरकायप्रयोगी च आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च ५, अथवा एकश्च औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगिणश्च ओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा कोई एक औदारिकमि शरीरकायप्रयोगी, एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत आहारकमिश्र शरीरकायप्रयोगी (२)। ___ (अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्प ओगिणो य, आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य) (अथवा एक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकशरीरकायप्रयोगी (३)। ___(अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य, आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा एक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत-से आहारक मिश्रशरीरकायप्रयोगी (४)। ___(अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगीणो य, आहारकसरीरकाय. पोगो य, आहारगमीसासरीरकायप्पभोगी य) अथवा बहुत-से औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, एक आहारकशरोरकायप्रयोगी और एक आहारकमि. शरीरकायप्रयोगी (५)। (अहवेगे य ओरालिय मीसगसरीरकायापओगी य, आहारगसरीरकायप्पओगी य आहा. रग मीसासरीरकयप्पओगीणो य) अथवा ४ मोहा२ि४ मिश्र सरी२४।यप्रयोगी, એક આહાર શરીરકાયપ્રોગી અને ઘણું આહારક મિશ્ર શરીરકાયયેગી (૨) (अहवेगे य ओरालिय मीसगसरीरकायप्पओगी य आहारणसरीरकायप्पओगीणो य, आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य) २५५१ मे यो२४ CHS शरी२४।यप्रयोगी, धा આહરક શરીરકાય પ્રવેગી, અને એક આહારક મિશ્ર શરીરકય પ્રવેગી (૩) (अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायस्पओगी य, आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा ये मोहा२४ मिरी२७५ प्रयोगी 4 मास२४ શરીરકાય પ્રાણી અને ઘણા આહારક મિશ્ર શરીરકાય પ્રવેગી (૪) (अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य, आहारगसरीरकायप्पओगी य, आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य) २५५ ५॥ मोहा२४ मिश्र शरी२४१य प्रयोग. अर આહારક શરીરકાય પ્રયાગી અને એક આહારક મિશ્ર શરીરકાય પ્રવેગી (૫) प्र० १०८ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩

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