Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
८८८
प्रज्ञापनासूत्रे प्रयोगगतिः, एवम्-यथा प्रयोगो भणितः तथा एषापि भणितव्या यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिः, जीयानां भदन्त ! कतिविधा प्रयोगगतिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ? पञ्चदशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सत्यमनःप्रयोगगतिः, यावत्-कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिः, नैरयिकाणां भदन्त ! कतिविधा प्रयोगगतिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! एकादशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सत्यमनःप्रयोगगतिः, एवम् उपयुज्य यस्य यतिविधा तस्य ततिविधा भणितव्या यावद चैमानिकानाम, जीवानां
(से किं तं पभोगगती १) प्रयोगगति के कितने भेद हैं ? (पओगगती पण्णरसविहा पण्णता) प्रयोगगति पन्द्रह प्रकार की कही है (तं जहा) यह इस प्रकार (सच्चमणप्पओगगती) सत्यमनप्रयोगगति (एवं जहा पओगो भणितो) इस प्रकार जैसे प्रयोग के भेद कहे (तहा एसा विभाणितव्चा) इसी प्रकार यह अर्थात् गति के भेद भी कहने चाहिए (जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती) यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति ।
(जीवाणं भंते ! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता ?) हे भगवन ! जीयों की कितने प्रकार की प्रयोगगति कही है ? (गोयमा ! पण्णरसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! पन्द्रह प्रकार की कही है (तं जहा-सच्चमणप्पओगगती जाच कम्मग सरीरकायप्पओगगती) यह इस प्रकार-सत्यमनप्रयोगगति पावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति । __(नेरइयाणं भंते ! कइविहा पओगगती पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की प्रयोगगति कही है ? (गोपमा ! एक्कारसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! ग्यारह प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सच्चमणप्पओ
(से कि तं पओगगती ?) प्रयोगगतिना सा ले छ ? (पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता) प्रयोगमति ५४२ प्रा२नी ही छे-(तं जहा) ते ॥ ४ारे छे (सच्चमणप्पओग गती) सत्यमनप्रयोगात (एवं जहाँ पओगो भणितो) मे रे म प्रयोगना ४ा छ (तहा एसा वि भणियव्या) मे माना अर्थात् मतिना मे ५ ॥ न (जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती) यावत् शरी२४१यप्रयोगपति
(जीवाणं भंते ! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता ) 3 लापन् ! वानी है lરની પ્રયોગગતિ કહી છે?
(गोयमा ! पण्णरसविहा पण्णत्ता) गोतम ! ५४२ प्रा२नी ४४ छ (तं जहा-सच्च मनप्पओगगती जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती) ते मा प्रा सत्य भनप्रयोगति यावत् કામણશરીરકાયપ્રગતિ
(नेरइयाणं भंते ! कइविहा पओगगती पण्णत्ता ?) 8 मापन् नरयिनी 21 प्रनी प्रयोगति ही छ ? (गोयमा ! एक्कारसविहा पण्णत्ता) 3 गौतम ! २५ीयार ४ानी प्रयेशातीही छ (तं जहा) ते ॥ ४॥२ (सच्चमणप्पओगगती) सत्य भनप्रयोगति (एवं)
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3