Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे मिश्रशरीरकायनयोगी च ३, अथवा एकेचाहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च ४, चतु भङ्गाः, अथवा एकचाहारकशरीरकायप्रयोगी च, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च १, अथवा एकश्वाहारकशरीकायप्रयोगी च, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च२, अथवा एके चाहारकशरीकायप्रयोगिणश्च, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च ३, अथवा एके चाहारकशरीरकायप्रयोगिणश्च, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च ४, एते जीवानामष्टौ १, नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं सत्यमनःप्रयोगिणो यावत्-किं कार्मणशरीरकायप्रयोगी १११, नैरयिकाः सर्वेऽपि तावद् भदेयुः सत्यमनः प्रयोगिणोऽपि यावद् वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, रकायप्पओगिणो य) अथवा कोई बहुत आहारकमिश्रशरीरकाय प्रयोगी (चउभंगो) चार भंग (अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पभोगी य, आहारगमीससरीरकायप्पओगी य) अथवा कोई एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी (अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य, आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा कोई एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और अनेक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी (अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगीअ) अथवा अनेक आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी (अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा कोई अनेक आहारकशरीरकायप्रयोगी और अनेक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी (एए) ये (जीवाणं) जीवों के (अट्ठ) आठ-भंग कहे हैं। ___ (नेरइया णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव कम्मासरीरकायप्पओगी) हे भगवन् ! नारक क्या सत्यमनःप्रयोगी हैं, यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी है ? (नेरइया सव्वे वि ताव) नारक सभी (होज्जा) होते हैं (सच्चमणप्पओगी चि) आधा माड२ मिश्रशरी२४१य प्रयी (चउभंगो) यार 1 (अहवेगे य आहारगः सरीरकायप्पओगी य, आहारगमीससरीरकायप्पओगी य) मथाई से पाहा२४०२४।य प्रयासी मने से माइ।२४ मिश्रशरी२४१यप्रयोगी (अवेगे य आहारग सरीरकायप्पअगी य आहारग मीसासरीरकायप्पओगीणो य) अथवा मे मा २४ शरी२७॥यप्रयोगी मने अनेमा. २४ मिश्ररी२५प्रयोगा (अहवेगे य आहारगसरीरकायाप भोगिणो य आहारगीसासरीरकायप्पओगी य) अथवा मन मा २५ शरी२४ययोगी मने मे४ मा २४भिशरी२४४ययोगी (अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगीणोय) अथवा मन मा २४ शरी२७॥य प्रयोग भने भने माहा२४मिश्रशरी२४यप्रयोगा (एए) से (जीवाणं)
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(नेरइयाणं भंते ! कि सच्चमणप्पओगी जाव कम्मासरीरकायप्पओगी) हे लगवन् ! ना२७ भुसत्यमन:प्रय छ, यापत भएर शरी२७।५ प्रयोगी छ ? (नेरइया सव्वेवि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩