Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू. ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् पचयो भणितव्यः १, कतिविधा खलु भदन्त ! इन्द्रियनिर्वर्तना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पश्चविधा इन्द्रियनिर्वर्तना प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना, यावत्-स्पर्शनेन्द्रिय निर्वर्तना, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि सन्ति२, श्रोत्रेन्द्रियनिर्वना खलु भदन्त ! कति समया प्रज्ञप्ता ? गौतम ! असंख्येयसमया अन्तर्मुहूर्तिका प्रज्ञप्ता, एवं यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम् ३, कतिविधा खलु भदन्त ! इन्द्रियइसी प्रकार वैमानिकों तक (जस्स जइ इंदिया) जिसकी जितनी इन्द्रियां हैं (तस्स तइविहो चेव इंदिओवचओ) उसका उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए। ___(कइविहा गंभंते ! इंदियनिव्यत्तणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! इन्द्रियनिर्वतना कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! पंचयिहा इंदियनिव्यत्तणा पण्णत्ता ?) हे गौतम ! पांच प्रकार की इन्द्रियनिर्वतना कहीं है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोईदियनिव्वत्तणा जाव फासिदियनिव्वत्तणा) श्रोत्रेन्द्रियनिवर्त्तना यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वसना (एवं नेरझ्याणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिको की (णयर) विशेष (जस्स जइ इंदिया अत्थि) जिसके जितनी इन्द्रियां हैं।
(सोइंदियणिवत्तणा णं भंते ! कइ समइया पण्णत्ता ?) हे भगवन् !श्रोत्रेन्द्रियनितना कितने समय की कही है ? (गोयमा! असंखेजसमइया अंतोमु. हूत्तिया पण्णत्ता ?) हे गौतम ! असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त की कही है (एवं जाव फासिदिय निव्वत्तणा) इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रियनियर्सना (एवं नेरझ्याणं जाय वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिकों की।
(कइविहा णं भंते ! इंदियलद्धी पण्णत्ता ?) हे भगवन् इन्द्रियलब्धि कितने (जस्स जइ इंदिया) नी सीन्द्रियो छ (तस्स तइविहो चेत्र इंदिओवचओ भाणियो) તેના તેટલા જ પ્રકારના ઈન્દ્રિપચય કહેવા ___(कइविहाणं भंते ! इंदिय निव्वत्तणा पण्णत्ता?) ३ मावान ! न्द्रिय नित नाटा - २नी डी छे ? (गोयमा ! पंचविहा इंदिय निव्वत्तगा पण्णत्ता) गोतम! पांय प्रसारनी न्द्रिय नियतन। ४ी छ (तं जहा) ते २॥ ४२ (सोइदिय निव्वत्तणा जाव फासि दिय निव्वत्तणा) श्रात्रेन्द्रिय नियत ना यावत् २५श नन्द्रिय नितना (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) से प्रहार ना२। यावत् वैनानिछानी (णवरं) विशेष (जस्स जइ इंदिया अत्थि) ने सीन्द्रय छ
(सोइंदियणिव्वत्तणाणं मंते ! कइ समइया पण्णत्ता ?) है भगवन् ! श्रेन्द्रियनित नाह सभनी ४सी छे ? (गोयमा ! असंखेज्जसमइया अंतोमुहुत्तिया पण्णत्ता) : गौतम ! मस'
यात समयमा मन्तभुइतनी ४ छ (एवं जाव फासिदियनिवत्तणा) से प्रारे यावत् २५शनन्द्रियनित (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) मे०४ ५४ा ना२३॥ यावत् पैमानिनी
(कइविहाणं भंते ! इंदियलद्धी पण्णत्ता) हे मावन् ! छन्द्रिय elve डेटा प्रा२नी प्र० ८७
श्री प्रशान। सूत्र : 3