Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू. ११ भावेन्द्रियस्वरूपनिरूपणम्
टीका-पूर्वपदे इन्द्रियवतामेव लेश्यादि सद्भावाद् विशेषत इन्द्रियपरिणामस्य प्रतिपादितत्वेन परिणामसाम्यात् प्रयोगपरिणाम प्ररूपयितुमाह-'कइविहे णं भंते ! पओगे पण्णते?' हे भदन्त ! कतिविधः खलु प्रयोगः प्रज्ञप्तः ? तत्र प्रपूर्वस्य युधधातोत्रि प्रत्यये सति प्रयोगपदेन परिस्पन्द क्रियारूप आत्मव्यापार उच्यते योग इत्यर्थः अथवा प्रकर्षेण युज्यतेव्यापार्यते क्रियासु सम्बध्य ते वा साम्परायिकर्यापथकर्मणा सहात्मा अनेनेति प्रयोगः, करणे घञ्प्रत्ययो बोध्यः, भगवानाह-'गोयमा ! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते' हे गौतम ! पञ्चदशविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः 'तं जहा-सच्चमणप्पओगे १' तद्यथा-सत्यमनः प्रयोगः १, 'असचमप्रयोग (वेउब्धियमीससरीरकायप्पओगे) वैक्रियमिश्रशरीरकाय प्रयोग (आहारकसरीरकायप्पओगे) आहारकशरीरकाय प्रयोग (आहारगमीससरीरकायप्पओगे) आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग (कम्मासरीरकायप्पओगे) कार्मणशरीकाय प्रयोग। ____टीकार्थ-इन्द्रिय वाले जीवों में ही लेइया का सद्भाव होता है, इस कारण इससे पहले वाले पदमें इन्द्रियपरिणाम का प्रतिपादन किया गया। अब परिणाम की सदृशता के कारण प्रयोगपरिणाम की प्ररूपणा की जाती है:
गौतमस्वामी-प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! प्रयोग कितने प्रकार का कहा गया है?
'प्र' उपसर्गपूर्वक 'युज' धातु से घञ् प्रत्यय होने पर 'प्रयोग' शब्द निष्पन्न हुआ है। प्रयोग का अर्थ है-परिस्पन्दन रूप आत्मा का व्यापार अर्थात् योग । अथवा जिसके कारण आत्मा क्रियाओं में सम्बद्ध हो या साम्परायिक और ईयोपथ आस्रव से संयुक्त हो, यह प्रयोग कहलाता है। यहां करण अर्थ में घञ् प्रत्यय हुआ है।
भगवान् उत्तर देते हैं-हे गौतम ! प्रयोग पन्द्रह प्रकार का कहा है, जो इस कायप्पओगे) 401२४ भित्र शरी२४४य प्रयो(कम्मा सरीरकायप्पओगे) आभए शरी२४ाय प्रयोग
ટીકાઈ–ઈન્દ્રિયવાળા જીવમાં જ વેશ્યાને સદ્ભાવ હોય છે, એ કારણે એના આગળના પદમાં ઈન્દ્રિય પરિણામનું પ્રતિપાદન કર્યું. હવે પરિણામની સદશતાને કારણે પ્રયોગ પરિણામની પ્રરૂપણ કરાય છે- શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન ! પ્રગ કેટલા પ્રકારના કહેલા છે?
પ્ર” ઉપસર્ગ સહિત “યુજ' ધાતુથી ઘન પ્રત્યય થવાથી “પ્રયોગ શબ્દ નિપન્ન થશે. પ્રયાગનો અર્થ છે–પરિસ્પન્દન રૂપ આત્માને વ્યાપાર અર્થાત્ ગ. અથવા જેને કારણે આત્મા ક્રિયાઓમાં સમ્બદ્ધ થાય, અગર સાંપરાયિક અને ઈર્યાપથ આસવથી સંયુક્ત થાય, તે પ્રયોગ કહેવાય. અહીં કરણ અર્થમાં “ઘર” પ્રત્યય થયેલ છે
श्री मायान- गौतम ! प्रयोग ५४२ मारने द्यो छ, २ ॥ ॥ छ-(१) सत्य भन: प्रये (२) असत्य मनः प्रया1 (3) सत्य भूषा भनः प्रयाग (४) असत्य
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3