Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नकाश्च अमायिसम्यग्दृष्टयुपपन्नकाच, तत्र खलु ये ते मायिमिथ्यादृष्युपपन्नकास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति न आहरन्ति, तत्र खलु ये ते अमायिसम्यग्दृष्टयुपपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अनन्तरोपपन्नकाश्च परम्परोपपत्रकाश्च, तत्र खलु ये ते अनन्तरोपपन्नकास्ते खलु न जानन्ति, न पश्यन्ति, आहरन्ति, तत्र खल ये ते परम्परोपपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्त काश्च, तत्र खलु ये ते अपर्याप्तकास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति न आहरन्ति, तत्र खलु ये ते पर्याप्तकास्ते हे भगवन् ! वैमानिक उन निर्जरा पुद्गलों को क्या जानते-देखते और आहार करते हैं ? (जहा मणूसा) मनुष्यों के समान (णवरं) विशेष (वेमाणिया दविहा पण्णत्ता) वैमानिक दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (माइ मिच्छद्दिष्टि उववण्णगा य अमाइ सम्मद्दिहि उववण्णगा य) मायी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न
और अमाथिसम्यग्दृष्टि उत्पन्न (तत्थ णं जे ते माइ मिच्छद्दिष्टि उववण्णगा) उनमें जो मायी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होते हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति) वे नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं (आहारेति) किन्तु आहार करते हैं (तत्थ णं जे ते अमाइ सम्मद्दिहि उववण्णगा) उनमें जो अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न हैं (ते दविहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अणंतरोववण्णगा य परंपरोववण्णगा य) अनन्तर उत्पन्न और परम्परा-उत्पन्न (तत्थ णं जे ते अणंतरोववण्णगा) उनमें जो अनन्तरोपपन्न हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति, आहारेति) वे नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं, और आहार करते हैं (तत्थ णं जे ते परंपरोचवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो परंपरोपपन्न हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं ( जहा) वे इस प्रकार (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) वैभानित नि शुगवान शुल-मे मन माह।२ ४२ छे (जहा मणूसा) भारसोनी समान (णवरं) विशेष (वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता) वैमानि मे १२॥ ॥ छ (तं जहा) तम। ॥ शते (माइमिच्छदिट्ठी उबवण्णगा य अमायी सम्मद्दिट्ठी उववण्ण. गाय) भाथी मिथ्याटि 64न्न भने समायी सभ्यष्टि G५-- (तत्थ गं जे ते माइ मिच्छदिदि उववण्णगा) तयाभा २ भायी मिथ्याट ५-न छ (ते णं न जाति न पासंति) तसा तो नथी तभ४ मत ५४ नथी (आहारे ति) परन्तु माह।२ ४२ छ (तत्थ णं जे ते अमायी मिच्छद्दिदि उववण्णगा) तेसोमा २ अभायी भियाट उत्पन्न छ (ते दुविहा पण्णत्तो) तो ये ४२ना ४ा छ (तं जहा) तेसो प्रारे (अणंतरोव. वण्णगा य परंपरोववण्णगा य) मनन्तर 64-न अने ५२५२।-उत्पन्न (तत्थ णं जे ते अणत. रोववण्णगा) तेसोमा रे मनन्त३५५न्न छ (ते णं न जाणंति न पासंति, आहारे ति) तेमा नथी लता, नया हेमता, माडा२ ४२ छे (तत्थ णं जे ते परंपरोववण्णगा से दुविहा पण्णत्ता) तमामा २ ५२५२१५५न्न छ, तय। मे २न सा छे (तं जहा) तेसो मा प्रकारे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩