Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू० १३ यचनस्वरूपनिरूपणम्
टीका-भाषा प्रस्तावात् तद् विशेषरूप वचनवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'कइविहेणं भंते ! वयणे पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! कतिविधं खलु वचनं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह'गोयमा !' हे गौतम ! 'सोलसविहे वयणे पण्णत्ते' षोडशविधं वचनं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा एगवयणे दुवयणे बहुवयणे' तद्यथा १ एकवचनम्-मनुष्य इति यथा, सद्विवचनम्-मनुष्यौ इति यथा, ३ बहुवचनम्-मनुष्या इति यथा, ४-इस्थिवयणं' स्त्रीवचनम्- इयं नारी इति यथा, ५ 'पुमवयणे' पुंवचनम्-पुल्लिङ्गवचनम्-यथा अयं पुमान् इति, ६-'गापुंसगवयणे' नपुंसकवचनम्-इदं वनमिति यथा, ७-'अज्झत्थवयणे' अध्यात्मवचनम्-यथा मनसि किश्चिएक वचन को यावत परोक्ष वचन को बोलता हुआ (पण्णवणी णं एसा भासा) यह भाषा प्रज्ञापनी है (ण एसा भासा मोसा) यह भाषा मृषा नहीं है।
टीकार्थ-भाषा का प्रसंग होने से भाषा के एक विशिष्ट रूप वचन का यहां प्रतिपादन किया जाता है
गौतम प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! वचन कितने प्रकार के कहे गये हैं ? भगवान्-हे गौतम ! वचन सोलह प्रकार का है। वे सोलह प्रकार यों हैं(१) एक वचन-जैसे मनुष्यः अर्थात् एक मनुष्य । (२) द्विवचन-द्वित्व का प्रतिपादक, जैसे 'मनुष्यो' अर्थात् दो मनुष्य । (३) वहुवचन-बहुत्व का प्रतिपादक,जसे 'मनुष्याः ' अर्थात् बहुत-से मनुष्य (४) स्त्रीवचन-स्त्रीत्व का प्रतिपादक, जैसे नारी'। (५) पुरुषवचन-पुलिंगवाचक, जैसे-'पुमान् ।
(६)नपुंसकवचन-नपुसकत्व वाचक, जैसे 'वनम्। भाषा भूषा नथी ? (हंता गोयमा इच्चेइत एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वदमाणे) हो, गौतम ! से प्रारे में क्यनने यावत् ५२।क्ष क्यनने मारता (पण्णवणीणं एसा भास) मा भाषा प्रज्ञापनी छ (ण एसा भासा मोसा) २. भाषा भूषा नथी.
ટીકાર્ય–ભાષાને પ્રસંગ હોવાથી ભાષાના એક વિશિષ્ટ રૂપ વચનનું અહીં પ્રતિ પાદન કરાય છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ ! વચન કેટલા પ્રકારના કહેલા છે? શ્રી ભગવાન–હે ગૌતમ! વચન સોળ પ્રકારના છે. તે સોળ પ્રકાર આ પ્રમાણે છે. (१) मे क्यन-मनुष्यः २मर्थात् मे मनुष्य. (२) द्विवयन-द्वित्वनु प्रतिपा६४, २म 'मनुष्यो' अर्थात् में मनुष्य, (3) मईयन-महत्व प्रतिया, रेम 'मनुष्याः' अर्थात् ५। मनुष्यो. (४) स्त्री चयन-स्त्रीत्व प्रतिपा६४, म 'नारी' । (५) ५३११यन-gial पाय जेभ 'पुमान्' । (६) नस क्यन-नस पाय 7 3-'वनम्'
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩