Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १३ २०३ गतिपरिणामादिनिरूपणम् परिणामः ५, गन्धपरिणामः ६, रसपरिणामः ७, स्पर्शपरिणामः ८, अगुरुलघुकपरिणामः९, शब्दपरिणामः १० । बन्धपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-स्निग्धवन्धनपरिणामः, मक्षपन्धनपरिणामश्च, समस्निग्धतायां बन्धो न भवति, समरूक्षतायामपि न भवति । विमात्रस्निग्धरूक्षत्वेन बन्धस्तु स्कन्धानाम् ॥१॥ स्निग्धस्य स्निग्धेन द्वयाद्यधिकेन, रूक्षस्य रूक्षेण द्वयाद्यधिकेन । स्निग्धस्य रूक्षेणोपैति चन्धो जघन्यवों विषमः समो वा ॥ २ ॥?, गतिपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः णाम (रसपरिणामे) रसपरिणाम (फासपरिणामे) स्पर्शपरिणाम (अगुरुलहुपरिणामे) अगुरुलघुपरिणाम (सद्दपरिणामे) शब्दपरिणाम
(बंधपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णते ?) हे भगवन् ! बंधपरिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गोतम ! बंधपरिणाम दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (णिबंधणपरिणामे) स्निग्ध बंधन परिणाम (लुक्खबंधणपरिणामे य) और रुक्ष बन्धन परिणाम __(समणिद्धयाए बंधो न होइ) समान स्निग्धता होने के कारण बंध नही होता (समलुक्खयाए चि ण होइ) समान गुण रूक्षता के होने पर भी बंध नहीं होता (वेमायणिद्व लुक्ख तण) विषम मात्रा वाले स्निग्ध और रूक्षत्य होने पर (बंधो उ खंधाणं) स्कंधों का बन्ध होता है __(णिद्धस्स णि द्वेण दुयाहिएणं) दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध का (लखखप्त लुखे ग दुयाहिएणं) दो गुण अधिक रूक्ष के साथ रूक्ष का (णिद्धस्म लुक्खेण उयेइ बंधो) स्निग्ध का रूक्ष के साथ बंध होता है (जहण्णवज्जो) जघन्य गुण को छोडकर (विसमो समो वा) विषम अथवा सम । (गंधपरिणामे) आधार (रसपरिणामे) २सपरिणाम (फासपरिणामे) २५ परिणाम (अगुरुलघुपरिणामे) AY३मधुपरिशुराम (सद्दपरिणामे) २४५.२म (बंधपरिणामणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) मान्य परिणाम 21 प्रा२ना ४यां छे ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) 3 गीतम! मे प्रा२ना ४i छ (तं जहा) ते २॥ प्रारे (णिद्धबंधणपरिणामे) स्नि मन्यन ५२म (लुक्खबंधणपरिणामेय) मने ३६ मन्धन प२ि।।म (समणिद्धयाए बंधो न होइ) समान निघता याना २) मध नथी हात। (समलुक्खयाए वि ण होइ) समान गुण ३क्षताना पाथी ५ मध नथी हात। (वेमायणिद्धलुक्खत्तणेणं) विषम मात्रा पण नियत्व भने ३६५ पाथी (बंधोउ खंधाणं) २७न्धान। मान्य है।य छ
(णिद्धस्स गिद्धेण दुयाहिएणं) मे गुY मधि४ स्नियना साथे स्निग्धा (लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं) मे गुण अधि: ३६नी साथे ३२ना (णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो) स्निग्धनी ३क्षनी साथे थाय छ (जहण्णवज्जो) धन्य गुणन छान (पिसमो समो या) વિષમ અથવા સમા
श्री. प्रशानसूत्र : 3