Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयघोधिनी टीका पद १४ सू० २ क्रोधप्रकारविशेषनिरूपणम् यावद् वैमानिकानाम्, एवं मानेनापि, माययापि, लोभेनापि चत्वारो दण्डकाः, जीयाः खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानैरष्ट कर्मप्रकृतीश्चितयन्तः ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानैरष्टकर्मप्रकृतीश्चितवन्तः, तद्यथा-क्रोधेन, मानेन, मायाया, लोभेन, एवं नैरयिकाणां यावद् पैमानिकानाम्, जीयाः खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानै रष्टकर्मप्रकृतीश्चिन्यन्ति ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानः, क्रोध कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार है (अभोगनिव्वत्तिए) उपयोग पूर्वक उत्पन्न किया हुआ (अणाभोगनिव्वत्तिए) विना उपयोग उत्पन्न हुआ (उपसंते) उपशान्त (अणुवसंते) अनुपशान्त (एवं नेरइया जाय येमाणियाण) इसी प्रकार नारको यायतू वैमानिकों का क्रोध (एवं माणेण वि) इसी प्रकार मान से भी (मायाए वि) माया से भी (लोभेण वि) लोभ से भी (चत्तारि दंडगा) चार दंडक
(जीया णं भंते ! कतिहि ठाणेहिं) हे भगवन् ! जीयों ने कितने स्थानों अर्थात् कारणों से (अट्टकम्मपगडीओ) आठ कर्मप्रकृतियां (चिणिसु ?) चय की हैं ? (गोयमा ! चउहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिंसु) हे गौतम ! चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय किया है (तं जहा) ये इस प्रकार (कोहेणं माणेगं, मायाए, लोभण) क्रोध से, मानसे, माया से, लोभ से (एवं नेरइयाणं जाव येमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिकों का
(जीया णं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अटकम्मपगड़ीओ चिर्णति) हे भगवन् जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ? (गोयमा ! चाहिं ठाणेहि) हे गौतम ! चार कारणों से (तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभणं) वे इस प्रकार-क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से (एवं नेरइया जाय वेमाणिया) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक उपयोग पूर्व उत्पन्न ४२राये (उवसंते) ७५न्त (अगुवसंते) अनु५-(एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) से प्रारं ना२। यावत् वैमानिडाना धि सभावां.
(एवं माणेण वि) मे शते मानथी ५३ (मायाए वि) मायाथी ५९ (लोभेण वि) awथी ५४ (चत्तारि दंडगा) या२ ६७४ नये..
(जीवाणं भंते! कइहिं ठाणेहिं) हे भगवन् ! वामे खi स्थान। अर्थात् शरणाथी (अटू कम्मपगडीओ) मा प्रतिया (चिणिंसु ?) यय ४२ छ ? (गोयमा ! चाहिं ठाणेहिं अटूकम्मपगडीओ चिणिसु ?) 3 गौतम ! या२ गोथी 28 ४भ प्रकृतियाना यय ४२ (तं जहा) ते ॥ २ (कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) ओपथी, मानथी, भायाथी भने alwथी (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियांग) मे रे ना२ ॥ यावत् वैमानिना विष समन्यु
(जीवाणं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अटुकम्मपगडीओ चिगंति ?) सन् ! १८ २)ोथी मा म प्रतियोनु ययन ४२ छ ? (गोयमा ! चउहि ठाणेहिं) ७ गौतम ! यार ४।२।थी (तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) ते २0 ४ारे थी, भानथा,
श्री प्रशान। सूत्र : 3