Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयबोधिनी टीकः पद १५ सू० १ इन्द्रियस्वरूपनिरूपणम् कइ पएसिए पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जपएसिए पण्णत्ते, एवं जाव फासिदिए ॥सू० १॥
छाया-कति खलु भदन्त ! इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्च इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियम् चक्षुरिन्द्रियम् घ्राणेन्द्रियम् जिह्वेन्द्रियम् स्पर्शेन्द्रियम् श्रोत्रेन्द्रियं खलु भदन्त ! कि संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! कदम्बपुष्पसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् चक्षुरिद्रयं खलु भदन्त ! किं संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! मसूरचन्द्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् । घ्राणेन्द्रियं खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! अति मुक्तकचन्द्रसंस्थानसंस्थितं, जिह्वेन्द्रियं खल पृच्छा, गौतम !
इन्द्रियवक्तव्यता शब्दार्थ-(कइ णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! इन्द्रियों कितनी कही हैं ? (गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच इन्द्रियों कही हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सोइंदिए, चक्खिदिए घाणिदिए जिभिदिए, फासिदिए) श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिहवेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय __(सोईदिए णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की कही है ? (गोयमा ! कलंबुया पुप्फसंठासंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! कदम्ब के फूल के आकार की कही है (चक्खिदिए णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! चक्षु इन्द्रिय किस आकार की कही है ? (गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! मसूर या चन्द्रमा के आकार की कही है (घाणिंदिए णं भंते ! पुच्छा ?) हे भगवन् ! घाणेन्द्रिय की पृच्छा ? (गोयमा ! अइमुत्तगचंदसंठाणसंठिए) हे गौतम ! अतिमुक्तक और चन्द्र के आकार की कही है (जिभिदिए णं पुच्छा ?) जिहवेन्द्रिय के विषय में प्रश्न ? (गोयमा ! खुरप्प
ઈન્દ્રિય વક્તવ્યતા साथ-(कइणं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ?) हे समपन् ! छन्द्रियो टसी ही छ ? (गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता) हे गौतम! छन्द्रियो पांय ४ी छे. (तं जहा) ते सारे (सोइंदिए, चक्खिदिए, घाणिदिए जिभिंदिए, फासिदिए) श्रीन्द्रिय, यक्षुधन्द्रिय, प्राणेન્દ્રિય, જિહેન્દ્રિય, સ્પર્શેન્દ્રિય
___ (सोइंदिएणं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! श्रोतेन्द्रिय उपा मा२नी हा छ ? (गोयमा! कलंबुया पुप्फसंठाणसंठिए पण्णत्ते) गोतम ! EPIना दूसना मारनी इस छ. (चक्खिं दिएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?) ॐ भगवन् ! यक्षुधन्द्रिय उपा मारनी. 5६] छ ? (गोयमा! मसूर बंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! भसू२ यन्द्रमान मानी अडस छ. (पाणिदिएणं भंते ! पुच्छा ?) भगवन् ! प्राणेन्द्रियनी छ। ? (गोयमा ! अइमुत्तगचंदसंठाणसंठिए) गौतम ! भतिभुत: मने यन्द्रना मारनी. (जिभिदिएणं पुच्छा ?) हिन्द्रियना विषयमा प्रश्न ? (गोयमा ! खुरप्पसंठाणसंठिए पग्णत्ते) है गौतम ! -
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩