Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० २ इन्द्रियाणामवगाहनिरूपणम् खलु यत्तद् भवधारणीयं तत् खलु समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तत्र खलु यत्तत उत्तरवैक्रियं तत् खलु नानासंस्थानसंस्थितम्, शेषं तच्चैव, एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कति इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! एकं स्पर्शनेन्द्रियं प्रज्ञप्तम, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रियं किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! मसूरचन्द्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रियं कियद बाहल्येन प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! अगुलस्यासंख्येयभागो बाहल्येन प्रज्ञप्तम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रिय कि स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य) भवधारणीय और उत्तर वैक्रिय (तत्य णं जे से भवधारणिज्जे) उनमें जो भवधारणीय है। (से णं समचउरंससंठाणसंठिए) वह समचतुरस्त्र संस्थान वाला (पण्णत्ते) कहा है (तत्थ णं जे से उत्तरवेउविए) उनमें जो उत्तरवैक्रिय है (से णं णाणा संठाणसंठिए) वह नाना आकार वाला होता है। (सेसं तं चेव) शेष वही (एवं जाव थणियकुमाराणं) इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार। ___(पुढविकाइयाणं भंते ! कह इंदिया पण्णता ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिको की कितनी इन्द्रियां कही हैं ? हे (गोयमा! एगे फासिदिए पण्णत्ते) गौतम ! एक स्पर्शनेन्द्रिय कही है (पुढवि काइयाणं भंते ! फासिदिए कि संठाणसंठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की कही है ? (गोयमा! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्त) गोतम ! मसूर की दाल के आकार की कही है (पुढविकाइया णं भंते ! फासिदिए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिको की स्पर्शनेन्द्रिय कितनी बडी कही है ? (गोयमा! अंगु२८५-महत्व (णवरं फासिदिए दुविहे पण्णत्ते) विशेष से ४ २५शनन्द्रिय में प्र४।२नी ही छ (तं जहा) ते २प्रारे (भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य) अधारणीय भने उत्तर वैठिय (तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे) तेमनामांथी सधारणीय छ (से गं समचउरंस. संठाणसंठिए) समयतुरस सस्थानी (पण्णत्ते) ४डस छ (तत्थ णं जे से उत्तरबेसविए) तेमां ने उत्तर वैठिय छ (से णं णाणासंठाणसंठिए) ते नाना मा२।। डाय छ (सेसं तं चेव) शेष ते प्रमाणे (एवं जाव थणियकुमाराण) मे० प्रारे यावत् स्तमितभार
(पुढविकाइयाणं भंते ! कइ इंदिया पण्णत्ता ) 3 भगवन् ! पृथ्वीयानी सी छन्द्रिय ४४ी छ (गोयमा एगे फासिदिए पण्णते) गौतम ! पृथ्वजयिनी मे ४ २५शेन्द्रियही छ ? (पुढविकाहयाण भंते ! फासिदिए किं संठाणसंठिए पण्णत्ते) 3 लावन् ! पृथ्वी।यिनी २५शेन्द्रिय 40 मा२नी ४ छ १ (गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्त) 3 गौतम ! भसूरनी हाना मारनी ही छ (पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते १) हे गौतम ! पृथ्वीयडीनी २५0 द्रिय ४८सी मोटी ४सी छ ? (अंगुलस्स असंखेज्जइ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩