Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४२८
प्रज्ञापनासूत्रे
क्षेत्रतोऽनन्ता लोकाः, द्रव्यतः सिद्धेभ्योऽनन्तगुणाः सर्वजीवानन्तभागोना, तत्र खलु यानि किल मुक्तानि तानि खलु अनन्तानि अनन्ताभिरुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभिरपह्रियन्ते कालतः, क्षेत्रतोऽनन्ता लोकाः, द्रव्यतः सर्वजीवेभ्योऽनन्तगुणाः, जीववर्गस्य अनन्तभागः, एवं कार्मणशरीराणामपि भणितव्यानि ||सू० २ ||
टीका - जीवानां शरीराणि द्विविधानी भवन्ति, बद्धानि मुक्तानि च तत्र प्ररूपणकाले Craft परिगृहीतानि भवन्ति तानि बद्धानि व्यपदिश्यन्ते, यानि पुनः पूर्वभवेषु जीवैः जो इस प्रकार (बलगाय मुक्केललगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बद्धेलगा) उनमें जो वद्र हैं (ते णं अणता) वे अनन्त हैं (अनंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणिहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों द्वारा अपहत होते हैं (कालओ) काल से (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्र से अनन्त लोक (दव्यओ सिद्धेहिंतो अनंतगुणा) द्रव्य से सिद्धों से अनन्तगुणा (सव्वजीवाणंतभागूणा) सर्व जीवों से अनन्तभाग हीन (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अनंता) उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं (अणताहि उस्सप्पिणि ओसप्पिणीहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं (कालओ) काल से (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्र से अनन्तलोक (दव्वओ सव्वजीवेहिंतो अनंतगुणा) द्रव्य से सब जीवों से अनन्तगुणा (जीववग्गस्साणंतभागे) जीव वर्ग के अनन्तवें भाग
( एवं कम्मगसरीराणि वि भाणियव्वाणि) उसी प्रकार कार्मण शरीर भी कहने चाहिए
टीकार्थ- जिन पांच शरीरों का वर्णन पहले किया गया है, वे दो-दो प्रकार के होते हैं - बद्ध और मुक्त । प्ररूपणा करते समय जीवों ने जिन शरीरों को ग्रहण (बद्धेललगा य मुक्केललगा य) अद्ध भने भुक्त (तत्थ णं जे ते बद्वेल्लया) तथेोभां ने मद्ध छे (तेणं अनंता) तेथे अनन्त छे ( अनंताहि उस्सप्पिणि ओसप्पिणिहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सचिलायो भने अवसर्पिणीयो द्वारा अपहृत थाय छे (कालओ) अणथी (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्रथी अनन्त ते। ४ ( दव्वओ सिद्धेहिंतो अनंतगुणा) द्रव्यथी सिद्धोथी अनन्तगणा छे ( सव्व जीवाणंतभागूणा ) अधा कोथी अनन्त लागहीन (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया तेणं अनन्ता) तेथे मां ने भुत छे तेथे सनन्त छे (अनंताहि उस्सप्पिणि ओसप्पिणिहि अवहीरंति) नन्त उत्सर्पिणीय, अवसर्पिणीयो द्वारा अपहृत थाय छे (कालओ) अजथी ( खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्रथी मनन्त उ ( दव्वओ सव्वजीवेहिं तो अनंतगुणा ) द्रव्यथी मधा वोथी अनन्तगणा (जीववगस्साणंत भागे) व वर्गना अनन्तभो लाग
( एवं कम्मगसरीराणि वी भाणियव्वाणि) से प्रारे अर्भ शरीर पशु अहेव लेहो ટીકા- જે પાંચ શરીરનુ વર્ણન પહેલાં કરી દિધેલુ છે, તે બે-એ પ્રકારના હાય છે—બદ્ધ અને મુક્ત પ્રરૂપણા કરતી વખતે જીવામાં જે શરીરને ગ્રહણ કરીને રાખ્યાં
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3