Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद १३ ० २ गतिपरिणामादिनिरूपणम्
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bration गतिपरिणामेन तियग्गतिकाः, शेषं यथा नैरयिकाणाम्, नवरं लेश्या परिणामेन याच्छुक्लेश्या अपि चारित्रपरिणामेन नो चारित्रिणः, अचारित्रिणोऽपि चारित्राचारित्रिणोऽपि वेदपरिणामेन स्त्रीवेदका अपि पुरुषवेदका अपि, नपुंसकवेदका अपि, मनुष्या गतिपरिणामेन मनुष्यगतिकाः, इन्द्रियपरिणामेन पञ्चेन्द्रियाः, अनीन्द्रिया अपि कषायपरिणामेन क्रोधकपायिणोsपि, यावत् - अकपायिणोऽपि, लेश्यापरिणामेन कृष्णलेश्या अपि, नहीं होते (सेसं तं चैव) शेष वही (एवं जाय चउरिदिया) इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक (वर) विशेष ( इंदियपरिवुड्डी कायच्या) इन्द्रियों की वृद्धि कर लेनी चाहिए ।
(पंचिदियतिरिक्खजोणिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया) पंचेन्द्रिय तिर्यच गतिपरिणाम से तिर्यंच गति वाले (सेसं जहा नेरइयाणं) शेष जैसे नारकों के परिणाम (णवरं) विशेष (लेस्सापरिणामेणं) लेश्या परिणाम से (जाव सुक्कलेस्सा वि) यावत् शुक्ललेइया वाले भी (चरित परिणामेणं) चारित्रपरिणाम से (नो चारित्ती) चारित्र वाले नहीं (अचारिती वि, चरित्ताचरित्ती वि) अचारित्र वाले भी, चारित्राचारित्र - देश चारित्र वाले भी होते है (वेदपरिणामेणं) वेद परिणाम से ( इत्थवेदगा बि, पुरिसवेदगा चि, नपुं सगवेदगा चि) स्त्री वेदी भी, पुरुष वेदी भी, नपुंसक वेदी भी होते है
( मणुस्सा गतिपरिणामेणं मणुयगतिया) मनुष्य गति परिणाम से मनुष्य गतिक है (इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया) इन्द्रिय परिणाम से पंचेन्द्रिय (अणिदिया चि) अनिन्द्रिय भी (कसायपरिणामेणं) कषाय परिणाम से (कोहकसाई वि जाव अकसाई वि) क्रोध कषाय वाले भी यावत् अकषायी भी (लेस्सापरिभिथ्यादृष्टि नथी होतां (सेसं तं चेत्र) शेष ते४ ( एवं जाब चउरिंदिया ) ४ प्रहारे यतुरिन्द्रियो सुधी (नवरं ) विशेष ( इंदियपरिवुड्ढी का यव्वा) इन्द्रियोनी वृद्धि अरी सेवी लेखे. (पंचिदियति रिक्खजोणिया गतिपरिणामेणं, तिरिया गतिया) पथेन्द्रिय तिर्यय गतियरिलाभथी तिर्यय गतिपाणा (सेसं जहा नेरइयागं ) शेष नेवां नारोना परिणाम (नवरं ) विशेष (लेस्सापरिणामेणं) बेश्या परिणामथी (जाव सुक्कलेस्सा वि) यावत् शुभ्सलेश्यावाणा ५] (चरित्तपरिणामेणं) सारित्र परिणामथी (नो चरिती) यारित्रवाणा नथी (अचरती वि चरितारिती वि) मयारित्रवाणा पशु, थारित्रायास्त्रि द्वेश यारित्रवाना पशु थाय छे (वेदपरिणामेणं) वेह परिणामथी ( इस्थिवेदगा वि, पुरिसवेदगा वि, नपुं सगवेदगा वि) खीवेही પણ, પુરૂષવેદી પણુ, નપુ ંસક વેદી પણ થાય છે
(मणुस्सा गतिपरिणामेणं मणुयगतिया) मनुष्य गति परिणामथी मनुष्य गति (इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया) 5 न्द्रिय परिणामधी पथेन्द्रिय (अनिंदिया वि) अनिन्द्रिय पशु (कसाय परिणामेणं) उषाय परिणामथी ( कोहकसाई वि जाव अकसाई वि) ोध उषायवाला य यावत् भाषायी पणु (लेस्सापरिण मेणं) बेश्या परिशु भथी ( कण्हलेस्सा वि जाब अलेस्सा वि)
प्र० ६६
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3