Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे
गौतमस्वामी पृच्छति - 'जीवपरिणामे णं भंते कइविहे पण्णते ?' हे भदन्त ! जीवपरिणामः खलु कतिबिधः-कियत्प्रकारकः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'गोयमा ! हे गौतम ! 'दस विहे पण्णत्ते' जीवपरिणामस्तावद् दशविधः प्रज्ञप्तः 'तं जहा - गइपरिणामे १' तद्यथा - गतिपरिणामः १, 'इंदिपरिणामे २' इन्द्रियपरिणामः २, 'कसायपरिणामे ३' कषायपरिणामः ३, 'लेसापरिणामे ४' लेश्यापरिणामः ४, 'जोगपरिणामे ५' योगपरिणामः ५, उवओगपरिणामे ६' उपयोगपरिणामः ६, 'णाणपरिणामे ७' ज्ञानपरिणामः ७, 'दंसणपरिणामे ८' दर्शनपरिणामः ८, चरित परिणामे ९' चरित्रपरिणामः ९, 'वेदपरिणामे १०' वेदपरिणामश्च १०, तत्र परिणाम प्रायोगिक अर्थात् प्रयोगजनित होता है और अजीब का परिणाम वैसिक (स्वाभाविक) होता है ।
गौतम स्वामी पुनः प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! जीव का परिणाम कितने प्रकार का होता है ?
भगवान् हे गौतम जीव का परिणाम दस प्रकार का कहा गया है, यह इस प्रकार है - (१) गतिपरिणाम (२) इन्द्रियपरिणाम (३) कषायपरिणाम ( ४ ) लेइयापरिणाम ( ५ ) योगपरिणाम (६) उपयोगपरिणाम (७) ज्ञानपरिणाम (८) दर्शनपरिणाम (९) चारित्रपरिणाम (१०) वेदपरिणाम ।
(१) गतिपरिणाम - नरक गतिनाम कर्म आदि के उदय से जिसकी प्राप्ति हो, यह गति परिणाम ।
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(२) इन्द्रिय परिणाम- इन्दन अर्थात ज्ञान रूप परम ऐश्वर्य के योग से आत्मा इन्द्र कहलाता है । अथवा इद्रते इति इन्द्रः, अर्थात् जीव । जो इन्द्र का हो यह इन्द्रिय । यहां इन्द्र शब्द से 'इ' प्रत्यय का निपात होता है । आत्मा પ્રાચેાગિક જનિત હાય છે અને અજીવનું પરિણામ (સ્વાભાવિક) હાય છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી પુનઃ પ્રશ્ન કરે છે હૈં ભગવન્! જીવના પરિણામ કેટલા પ્રકારના
उडेलां छे ?
શ્રી ભગવાન્-હે ગૌતમ ! જીવના પરિણામ દેશ પ્રકારના કહેલાં છે તે આ પ્રકારે છે
(१) गति परिणाम (२) इन्द्रियपरिणाम (3) दुषाय परिणाम (४) बेश्या परिलाभ (4) योग परिणाम (६) उपयोग परिणाम (७) ज्ञान परिणाम (८) हर्शन परिणाम (ङ) चारित्र परिणाम (१०) वेह परिणाम.
(૧) ગતિપરિણામ-નરકગતિ નામકમ આદિના ઉદયથી જેની પ્રાપ્તિ થાય તે ગતિપરિણામ. (૨) ઈન્દ્રિય પરિણામ–ઇન્દન અર્થાત્ જ્ઞાન રૂપ પરમ ઐશ્વના ચેાગથી આત્મા इन्द्र महेचाय छे, अथवा 'इन्दते इति इन्द्रः' अर्थात् प ने न्द्रिनो होय ते न्द्रिय અહી ઈન્દ્ર શબ્દથી ‘ચ’ પ્રત્યયના નિપાત થયા છે. આત્માનુ ઇન્દ્રિય રૂપે પરિણમન ઈન્દ્રિય પરિણામ કહેવાય છે.
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3