Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे द्विवर्गमूलप्रत्युत्पन्नम्, अथवा खलु अगुलद्वितीयवर्गमूलघनप्रमाणमात्राः श्रेणयः, तत्र खलु यानि तावद मुक्तानि तानि खलु यथौदारिकस्य मुक्तानि तथा भणितव्यानि, नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति आहारक शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम : द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाबद्धानि च मुक्तानि च, एवं यथा औदारिकाणि बद्धानि मुक्तानि च भणितानि तथैव आहारकाण्यपि भणितव्यानि, तैजसकार्मणानि यथा एतेषाश्चैव वैक्रियाणि ॥सू० ३॥ क्षेत्र से असंख्यात श्रेणियां (पयरस्स असंखेज्जइभागो) प्रतर का असंख्यातवां भाग (तासि णं सेढोणं) उन श्रेणियों की (विक्खंभसूई) विष्कंभसूची (अंगुलस्स पढम वग्गमूलं) अंगुल का प्रथम वर्गमूल (षितीयवग्गमूल पडुप्पण्णं) द्वितीय वर्गमूल से गुणित (अहव ण) अथवा (अंगुलवितीयवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ) अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के घन प्रमाण मात्र श्रेणियां
(तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहा भाणियच्या) उनमें जो मुक्त वैफ्रिय हैं, वे मुक्त औदारिक के समान कह लेने चाहिए
(नेरइयाणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता) हे भगवन् नारको के आहारक शरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस भांति (बल्लिगा य मुक्केल्लगा य) बद्ध और मुक्त (एवं) इस प्रकार (जहा ओरालिए बल्लिगा मुक्केल्लगा य भणिया) जैसे
औदारिक के बद्ध और मुक्त कहे हैं (तहेच) उसी प्रकार (आहारगा वि भाणियया) आहारक भी कहने चाहिए (तेया कम्मगाइं जहा एएसिं चेय वेउचि. याई) तैजस और कार्मण जैसे इन्हीं के वैकियक थाय छ (खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ) त्रियी असभ्यात श्रेणिया (पयरस्स असंखेज्जइ भागो) प्रत२ना असभ्यातमा ला (तासिणं सेढीणं) ते श्रेणियोनी (विक्खंभसूई) qिeet सूची (अंगुलपढमवग्गमूलं) भानु प्रथम भूस (बितीय चम्गमूलपडुप्पणं) द्वितीय व भूसथी गुणे (अहवणं) अथवा (अंगुलबिइयपग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ) અંગુલના દ્વિતીય વર્ગમૂલના ઘન પ્રમાણમાત્ર શ્રેણિ
(तत्थण जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केलगा तहा भाणियव्वा) तमाम જે મુક્ત વૈક્રિય છે, તેઓ મુક્ત ઔદારિકના સમાન કહી લેવા જોઈએ
(नेरइयाण भंते ! केवइया आहारगमरीरा पण्णता) : सन् ! नाना मा.२५ शरीर 32ai i छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) है गौतम! मे २न। छ (तं जहा) ते 20 प्ररे (बद्धेलगाय मुक्केलगाय) मा भने भुत (एवं) से प्रारे (जहा ओरालिएबद्धेल्लगा मुक्केलगा य भणिया) २५॥ मोहारिया मा भने मुरत ४॥ छ (तहेव) ते २ रे (आहारगा वि भाणियव्या) मा.२४ ५९ ४३५ नये (तेया कम्मगाई जहा एएसिं चेव येउब्धियाई) तस भने भए २५ सयाना वैठिय
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩