Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे दो चउ इको पंच दो छक गेक्क गढे व ।
दो दो णव सत्तेव य ठाणाई उरि हुताई ॥२॥ छाया-पट् त्रीणि त्रीणि शून्यं पञ्चैव च नव च त्रीणि चत्वारि ।
पश्चैव त्रीणि नव पश्च सप्त त्रीणि त्रीण्येति चत्वारि पट् ॥१॥ द्वौ चत्वारि एकः पञ्च द्वे षट् एकम् अष्टैव ।
द्वे द्वे नव सप्तव च स्थानानि उपरि भवन्ति ।।२॥ इति, अथ प्रागुक्तामेव संख्यां विशेष रूपेण परिज्ञानार्थ प्रकारान्तरेण प्ररूपयति-'अहव णं छण्णउई छेयणगदाइरासी' अथवा खलु षण्णवतिच्छेदनकानि यो राशि र्ददाति स षण्णवतिच्छेदनक दायी राशि रुच्यते, तथा चार्द्धन अनि छिद्यमानो यो राशिः षण्णवतिं वारान् छेदं प्राप्तुं समर्थः, अन्ते च सकलमेकं रूपं निष्पन्नं भवति स पण्णवतिच्छेदनकदायी राशी व्यपदिश्यते, यथा प्रागुक्तः पष्ठो वर्गः पञ्चमवर्गगुणितः सन् यावान् राशिः सम्पन्नः सोऽवसेयः, तथाहि-अत्र पूर्वोपदर्शितः प्रथमवर्गश्छिद्यमानो द्वे छेदन के दातुं समर्यो भवति तद्यथाप्रथमच्छेदनकं द्वौ, द्वितीयं छेदनकमेको ददातीति सम्मेल्य द्वे छेदनके संजाते, प्रथमवर्गस्य प्रागुक्तस्य चतुःसंख्यात्मकत्वात्, द्वितीयोवर्गश्चत्वारि छेदनकानि दातुं समर्थः, तस्य षोडश पांच, तीन, नौ, पाँच, सात, तोन, तीन, चार, छह, दो, चार, एक, पांच, दो, छह, एक, आठ, दो, दो, नो, और सात । ॥१-२॥ _अब उसी पूर्वोक्त संख्या को विशेष रूप से समझाने के लिए कहते हैंअथवा 'छयानवे छेदनक राशि । जो संख्या आधी-आधी करने पर छयानवे वार छेदन को प्राप्त हो और अन्त में एक बच जाय वह छयानवे छेदनकदायी राशि कह लाती है। यह राशि उतनी ही है जितनो पंचम वर्ग का छठे वर्ग के साथ गुणाकार करने पर होती है । जैसे-पहला दिखलाया हुआ प्रथम वर्ग अगर छेदा जाय तो दो छेदनक देता है -पहला छेदनक दो और दूसरा छेदनक एक । दोनों को मिलाने से दो छेदनक हुए, क्योंकि प्रथम वर्ग की संख्या चार है। इसी प्रकार दूसरे वर्ग के चार छेदनक होते हैं क्यों कि वह सोलह संख्या मही अपाय छ. छ, १०१ ४ शून्य, पांय, नय, त्र, यार, पाय, , नप, पांय सात, ३, ४, या२, ७, मे, य॥२, मे, पाय, मे, 9, 2415, मे, मे, 14 म. सात ॥ १-२॥
હવે એજ પૂર્વોક્ત સંખ્યાતને વિશેષ રૂપે સમજાવવાને માટે કહે છે--અથવા ૯૬ છેદનક રાશિ. “જે સંખ્યામાં અધિ અદ્ધિ કરવાથી ૯૬ વાર છેને પ્રાપ્ત થઈ અને અન્તમાં એક વધે તે ૯૬ છેદનક રાશિ કહેવાય છે. એ રાશિ એટલી જ છે જેટલી પંચમવર્ગના છઠા વર્ગની સાથે ગુણાકાર કરવાથી થાય છે. જેમ પહેલા બતાવેલ પ્રથમવર્ગ અગર છેદાય તે બે છેદનક આપે છે–પહેલે છેદનક છે અને બીજો છેદનક એક, બન્નેને સરવાળો કરવાથી બે છેદનક થયા. કેમકે પ્રથમ વર્ગની સંખ્યા ચાર છે. એ જ પ્રકારે
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3