Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ११० १० भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम्
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टीका-पूर्व भिन्नान्यपि निस्सृजति इत्युक्त्या भाषाद्रव्य भेदप्रस्तावात्तद्भेदान् प्ररूपयितु माह - 'तेसिणं भंते ! दव्वाणं कतिविहे भेए पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! तेषां खलु पूर्वोक्तानां द्रव्याणां - भाषाद्रव्याणामित्यर्थः कतिविधो भेदः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'गोमा !' हे गौतम! 'पंचविहे भेदे पण्णत्ते' भाषाद्रव्याणां पञ्चविधो भेदः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा खंडाभेदे, पयरभेदे, चुण्णियाभेदे, अणुतडियाभेदे' तद्यथा - खण्डभेदः, प्रतरभेदः, चूर्णिकाभेदः, अनुतटिका भेदः, उत्कटिकाभेदः, तत्र लोहखण्डादिवत् भाषाद्रव्याणां खण्डभेदोऽवसेयः, अभ्रपटल भूर्जपत्रादिवत् प्रतरभेदः, प्रक्षिप्तपिष्टादिवत् चूर्णिका भेदः, इक्षुत्वचादिअनंतगुणाइं) प्रतर भेद से भिदने वाले द्रव्य अनन्तगुणा हैं (खंडाभेदेणं भिज्जमाणाई अनंतगुणाई) खंड भद से भिदने वाले द्रव्य अनन्त गुणा हैं ।
टीकार्थ- पहले कहा गया था कि कोई-कोई वक्ता भिन्न भाषाद्रव्यों का निसर्ग करता है । इस कथन से भाषाद्रव्य के भेद का प्रसंग उपस्थित हुआ । इसी प्रसंग को लेकर यहाँ भेद के प्रकारों का प्रतिपादन किया जाता है
गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! द्रव्यों का भेद अर्थात् भेदन कितने प्रकार का कहा है ?
भगवान् उत्तर देते हैं - हे गौतम ! भेद पाँच प्रकार का कहा गया है । वे पाँच प्रकार ये हैं- (१) खण्डभेद (२) प्रतरभेद (३) चूर्णिकाभेद (४) अनुतटिकाभेद और (५) उत्कटिकाभेद ।
इनमें से लोहखंड आदि के समान भाषाद्रव्यों का खंडभेद होता है, अभ्रक के पलों या भोजपत्रों के समान प्रतरभेद समझना चाहिए, आटे आदि के समान चूर्णिकाभेद होता है, ईख की छाल आदि के समान अनुतटिकाभेद होता है, लेदृथी लेहाता द्रव्य मनंतंगा छे (खंड भेदेणं भिज्जमाणाइ अनंतगुणाई) भंड लेथी ભેદાનારા દ્રવ્ય અનન્તગણા છે
ટીકા-પહેલા કહ્યુ` હતુ` કે કઈ કઈ વક્તા ભિન્ન ભાષા દ્રવ્યોના નિસર્ગ કરે છે. એ કથનથી ભાષા દ્રવ્યના ભેદના પ્રસંગ ઉપસ્થિત થયા. એજ પ્રસ`ગને લઈ ને અહી ભેદના પ્રકારાનુ પ્રતિપાદન કરાય છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન્ ! દ્રવ્યેાના ભેદ અર્થાત્ ભેદન કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે?
શ્રી ભગવાન્ ઉત્તર આપે છે-હે ગૌતમ! ભેદ પાંચ પ્રકારના કહેલા છે. તે પાંચ अहार मा छे—(१) अडलेह (२) प्रतरलेह (3) यूर्शिअलेह (४) अनुतटिअलेह (4) 5ટિકાભેદ તેઓમાંથી લેાહખંડ આદિના સમાન ભાષા દ્રન્ગેાના ખડભેદ થાય છે, અખરકના પડાના ભેજપત્રાની જેમ પ્રતર ભેદ સમજવા જોઇએ, લેટ વિગેરેની સમાન ચૂર્ણિકા ભેદ થાય છે, સેલડીની છાલ વિગેરેની જેમ અનુતટિકા ભેદ થાય છે સ્નત્યાઘ ફળીના ફુટવાની
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3