Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे
ये ते संसारसमापनकाः ते खलु सिद्धाः, सिद्धाः खलु अभाषकाः, तत्र खलु ये ते संसारसमापनकास्ते द्विविधाः प्रज्ञताः, तद्यथा - शैलेशी प्रतिपन्नकाश्च अशैलेशी प्रतिपश्नकाश्च तत्र खलु ये ते शैलेशी प्रतिपन्नास्ते खलु अभाषकाः, तत्र खलु ये ते अशैलेशी प्रतिपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - एकेन्द्रियाश्च, अनेकेन्द्रियाथ, तत्र खलु ये ते एकेन्द्रियास्ते खलु अभाषकाः, तत्र खलु ये ते अनेकेन्द्रियास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च तत्र खलु ये ते अपर्याप्तास्ते खलु अभाषकाः, तत्र खलु ये ते पर्याप्तकास्ते खलु भाषकाः, तद् जीव दो प्रकार के कहे गए हैं (तं जहा) वे इस प्रकार ( संसारसमावण्णगा य असंसार समावण्णगा य) संसार समापन्न अर्थात् संसारी और असंसार समापन्न अर्थात् मुक्त (तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा) उनमें जो असंसार समापन्न हैं (तेगं सिद्धा) वे सिद्ध हैं (सिद्धाणं अभासगा) सिद्ध अभाषक हैं (तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा) उनमें जो संसारी हैं (ते दुबिहा पण्णत्ता)
दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सेलेसीपडिवण्णगा य असेलेसी पडवण्णगा य) शैलेशी करण को प्राप्त और शैलेशी करण को जो प्राप्त न हों (तत्थ णं जे ते सेलेसीपडिवण्णगा ते णं अभासगा) उन में जो शैलेशीप्राप्त हैं' वे अभाषक हैं (तत्थ णं जेते असेलेसी पडिवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो अशैलेशीप्रतिपन्न हैं, वे दो प्रकार के हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार (एगिंदिया य अगिंदिया य) एकेन्द्रिय और अनेकेन्द्रिय (तत्थ णं जे ते एगिंदिया ) उनमें जो एकेन्द्रिय हैं (ते णं अभासगा) वे अभाषक हैं (तत्थ णं जे ते अणेगें दिया ते दुहि पण्णत्ता) उनमें जो अनेकेन्द्रिय हैं, वे दो प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार ( पज्जन्त्तगा य अपज्जन्तगा य) पर्याप्त और अपर्याप्त (तत्थ णं जे ते
प्रारे (संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य) संसार समापन्न अर्थात् संसारी उसने असंसार सभापन्न अर्थात् भुक्त (तत्थणं जे ते असंसारसमावण्णगा) तेमां ने सौंसार समापन्न छे ( तेणं सिद्धा) तेथे। सिद्ध (सिद्धाणं अभागा ) सिद्ध भाषा छे (तत्थणं जे ते संसारसमावण्णगा) तेथेोभां ने संसारी छे (ते दुविधा पण्णत्ता) ते मे પ્રકારના उद्या छे (तं जहा) ते या अहारे (सेलेसी पडिवण्णगाय, असेलेसी पडिवण्णगा य) शैलेशी १२णुने आप्त भने शैसेशी पुराने ने आसन होय (तत्थणं जे ते सेलेसी saण्णा तेणं अभासगा) तेथेोभां ने शैलेशी अने आस छे ते मला छे (तत्थणं जे ते असेलेसी पडिवण्णागा ते दुबिहा पण्णत्ता) तेथेोभां ? सशैखेशी अतियन्न छे, तेथे थे प्रहारना छे (तं जहा) तेथे या प्रारे (एगिंदिया य अणेगिंदिया य) येडेन्द्रिय भने मनेन्द्रिय (तत्थणं जे ते एगिंदिया) तेयामां ने मेहेन्द्रिय छे (तेणं अभासगा) तेथे। भाषछे (तत्थणं जे ते अणेगें दिया ते दुविहा पण्णत्ता) तेसोभांधी ने मनेन्द्रिय छे, तेथेो मे अक्षरना छे (तं जहा) ते या अठारे ( पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्त भने
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩