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सम्पर और शिव परियार
प्रभु महावीरी ६१ के पाठ पर:
आचामेदेव श्रीविजयसिंह सूरीश्वरजी महाराज हुये । तत्पट्टे
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विशाखापत किवावदार करते
अनुयोगाचार्य पास श्री सत्यविजयजी गणिवर हुए पन्यास श्री कर्पूरविजयजी गणिवर
पन्यास श्री क्षमा विजयजी गणिवर पन्यास श्री जिनविजयजी गणिवर पंन्यास श्री उत्तमचिजयजी गणिकर पन्यास श्री पद्मविजयजी गणिवर पंन्यास श्री रूपविजयजी गणिवर पन्यास श्री अमीविजयजी गणिवर पन्यास श्री सौभागविजयजी गणिवर पंन्यास श्री रत्नविजयजी गणिवर पंन्यास श्री भावविजयजी गणिवर