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सम्वत् १९९० का चातुर्मास गुरुमहाराजके संग बम्बई गोडीजीके उपाश्रयमें किया । चातुर्मास के बाद घाटकोपर, थाणा, पनवेल, खापोली, तलेगांव होकर खिडकी पधारे। वहां पूनाके सेठीये विनति करनेको आये इसलिये भव्य स्वागतके साथ पूनामें प्रवेश किया और सम्बत् १९९१ का चातुर्मास भी नहीं किया । इस चातुर्मासमें शेठ लीलाचन्द जयचन्दने आचार्यमहाराजको व्याख्यानमें भगवतीसूत्र फरमानेकी बिनति की और इस चातुर्मासमें उपधान तपकी क्रिया प्रारम्भ की जिस में १२३ स्त्री-पुरुषोंने प्रवेश किया। उपधानतपकी समाप्तिपर मालोत्सव के प्रसंगपर शेठ ललचन्द जय चन्दकी ओरसे अठाई महोत्सव तथा शान्तिस्मात्र, नवकारसी और न्यात भोजन हुआ। फिर वहांसे विहारके अवसरपर आचार्योके उपदेशसे महेसाणानिवासी सेठ देवचन्द हरणचन्दभाईमे महाराजश्रीको अंतरीक्षपार्श्वनाथ की यात्रा कराने निमित दस-बारह मनुष्योंकी एक मन्डली बनाकर साथ जानेकी भावना हुई । अतः आचार्य श्री मन्डलीके साथ विहार करते हुए तलेगांव, घोडनदी, अहमदनगर, औरंगाबाद जालना, होकर फाल्गुन शुक्ला के दिन सीरपुर फ्वारे । वहां आचार्यश्रीके पधारने की सूचना पाकर बालापुर के शेठ लोग विनति करमेको आये, शरीर के अस्वस्थ होनेके कारण दस-बारह दिन वहां बिराजन्म हुआ। वहांले आचार्य श्रीका पातुर विहार हुआ । वहां आकोले गृहस्थलोग विनति करनेको आये इसलिये वहां से आकोला पधारे जहां उनका बडे धूम्रकामसे भव्य स्वागत के साथ नगरमें प्रवेश हुआ, कुछ काल वहां व्यतीत कर बालापुर पधारे
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जहां के श्रीसंघने उनका खूब स्वागत किया और चातुर्मासके लिये अनुनय विनति की इसलिये सम्वत् १९९२का चातुर्मास वहांपर