Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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विश्व रचना, व्यवस्था का परिदृश्य एवं संतुलन की सुई
सहजता से अपने आदर्श पथ पर आगे बढ़ सकेंगे। समझें कि एक आदमी ऐसे रास्ते पर चल रहा है जो ऊबड़-खाबड़ है, कांटों और कंकड़ों से भरा है उस पर चल पाना कितना कठिन होगा? इतना कि वह गति तो पकड़ ही नहीं पायेगा। (अपवाद को छोड़ दे)। उस रास्ते की जगह अगर पक्की डामर या सीमेंट की सड़क बन जाए तो समर्थ ही नहीं, अर्ध समर्थ व्यक्ति भी उस पर चल सकेंगे और सामर्थ्य के अनुसार गति भी पकड़ सकेंगे।
तो ऐसे कच्चे रास्ते के स्थान पर पक्की सड़क बनाने का काम लेना चाहिये चरित्रनिर्माण का आन्दोलन चलाने वालों को। जब एक आवश्यक स्तर एक व्यक्ति की नैतिकता और विश्व की व्यवस्था रहेगी तो अधिकतम व्यक्ति अपने आदर्श के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता की आशा रख सकेंगे।
आज विश्व की व्यवस्था विश्रृंखलित हो रही है। इसका मूल कारण है अनेक स्तरों पर कार्यरत व्यक्तियों में चरित्र का अभाव। इस अभाव को जब संतोषजनक सीमा तक दूर नहीं किया जाएगा तो विश्व की व्यवस्था नहीं सुधरेगी और उसके अनुसार व्यक्तियों के विकास की क्षमता का भी समुचित रूप से निर्माण नहीं होगा। इस तरह यही चरित्र निर्माण की मूलभूत अपेक्षा है। ___ मुक्त संपर्क के साथ व्यक्ति की स्वतंत्रता और शासन प्रणाली में लोकतंत्र की स्थापना विश्वव्यवस्था को पूरी मजबूती देगी। प्रतिबंधित संपर्क सूत्र फैलाते हैं गलत समझ, कटुता, वैर और हिंसा :
मुक्त सम्पर्क के स्थान पर यदि विश्व के विविध घटकों के बीच संपर्क प्रतिबंधित होता है तो सारा वातावरण एकदम विपरीत हो जाता है। चाहे तो राष्ट्रों में सैनिक या अधिनायकवादी सरकारें हों या जातिवादी संगठनों के बीच आक्रामकता बने अथवा साम्प्रदायिक संस्थाएं कट्टरतावाद का प्रचार करे तो उस दशा में व्यक्ति से लेकर संबंधित संगठन पारस्परिक संपर्क पर रोक लगा देते हैं और अपनी-अपनी मान्यताओं पर अड़ जाते हैं। प्रतिबंधों की अवस्था में पहले गलत समझ पनपती है, अफवाहों को फैलने में मदद मिलती है और कटुता का वातावरण बनता है। यही कटुता कई कारणों से वैर में बदलती है जो हिंसा तक पहुँच जाती है। इस हिंसा के अपने-अपने स्तर पर अनेक रूप होते हैं-झगड़ा, मारपीट, दंगे, खून-खराबा और राष्ट्रों के स्तर पर युद्धों की विभीषिकाएं।
सम्पर्क टूटने पर सद्भाव समाप्त होता है, क्योंकि चरित्र का आधार टूटता है और ज्यों-ज्यों चरित्रहीनता की प्रवृत्तियाँ फैलती है, त्यों-त्यों मानवीय गुणों का विनाश होता है। ऐसे में जब विकारों की आंधी चलती है तो हिंसा की आग भड़के बिना नहीं रहती। व्यक्तिगत जीवन के अनेक पक्ष तथा संतुलन की सुई व्यक्ति के हाथ : ___ व्यक्ति एक होता है, किन्तु उसका जीवन बहुपक्षीय बन जाता है। परिवार में है तो उसके पारिवारिक संबंध और दायित्व होते हैं। गांव-नगर की विविध प्रवृत्तियों में उसकी भागीदारी होती है। जाति या धर्म के संगठनों में भी उसे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है। राजनीति में है तो
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