Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
रूप में संगठित हो जाए। ऐसी प्रेरणा देता है धर्म और चरित्र, उसे व्यक्ति-व्यक्ति एवं समूह-समूह के आचरण में ढालता है, तब कहीं मानव गतिशील होता है और प्रगति की राह पकड़ता है।
ठीक इसके विपरीत धर्म के नाम पर चलाई जाने वाली गतिविधियां चरित्रशीलता को गिराती हैं और चरित्रहीनता को बढ़ावा देती हैं-चाहे उन्हें सच्चे धर्म के रूप में सजा-संवार कर लोगों को बताया जाता हो। मिथ्या आधार पर चलाई गई ऐसी प्रवृत्ति जो दिखने में शुभ भी समझ में आवे तब भी वह बुराई ही बिखेरेगी। मिथ्या से सत्य कदापि फूट नहीं सकता। बुराई से बुराई ही बढ़ेगी और चरित्रहीनता से चरित्रहीनता ही फैलेगी, क्योंकि जितनी कट्टरतावादी कार्यवाहियाँ होती हैं उनको आधार मिथ्या और कपट का ही मिलता है।
वर्तमान समय का यह शुभ संकेत भी दिखाई दे रहा है कि जागृति का एक नया वातावरण भी जन्म ले चुका है और जो विश्व स्तर पर फैलने भी लगा है। सामाजिक रूप से इस जागृति का असर यह हो रहा है कि सम्प्रदायों के बीच संघर्ष कम और जुड़ाव का भाव ज्यादा मजबूत हो रहा है। यह विचारणा भी चल रही है कि सहमति के मुद्दों को उभारा जाए और उन निर्विवाद क्षेत्रों में अधिकाधिक सहयोग बढ़े, जहां सहयोग करके सच्चे मानव धर्म को सशक्त बनाया जाए। राष्ट्रीय स्तर पर भी कौमियत और मजहबी अलगाव को कमजोर करते हुए निरपेक्षता पर अधिक बल दिया जाने लगा है। विश्व स्तर पर धर्म के नाम पर चल रहे आतंकवाद को पस्त करने के लिए प्रतिरोधी शक्तियां संगठित हो रही हैं और आतंकवाद के गढ़ों को ध्वस्त किया जा रहा है। इन सारे कार्यकलापों का परिणाम यही होगा कि धर्म के नाम पर चलाए जा रहे छद्म धर्म का सफाया हो जायेगा और सच्चे मानव धर्म को विश्व भर में व्याप्त बनाने के लिए सबके प्रयत्न एकजूट हो जाएंगे। इन आशाजनक परिस्थितियों में सर्वाधिक आवश्यकता यह है कि सभी क्षेत्रों में पसरी चरित्रहीनता पर सांघातिक चोट की जाए और चरित्र निर्माण तथा विकास के लिए कठोरतम प्रयास किए जाएं ताकि विकसित बनकर चरित्रशीलता फिर से मानव को कई वैचारिक, धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति लाने और उसे . संफल बनाने का सामर्थ्य प्रदान कर सके। यह चरित्रशीलता ही आज के करोड़ों असंस्कृत, दलित एवं शोषित लोगों का त्राण बन सकती है तथा विश्व को एकता एवं सर्वसहयोगिता के आधार पर खड़ा कर सकती है। समय की मांग है कि युवा शक्ति चरित्रहीनता के विरुद्ध सफल संघर्ष की चुनौती को स्वीकार करे और अपनी बलिदानी वृत्ति तथा संकल्प शक्ति का परिचय दे। एक-एक कष्ट पीड़ित चेहरा इस युवाशक्ति को आशाभरी नजरों से देख रहा है और एक-एक आंसू बिखेरती हुई आंख अपने आंसू पौंछने वाले की बाट जोह रही है-क्या युवा शक्ति यह सब देखकर भी सन्नद्ध नहीं होगी?
पाश्चात्य दार्शनिक एच.एच. जैक्सन की भावना को अपने मन में भी रमा लें तो कैसा हो? वे कहते हैं-'यदि मैं जी सकू तो किसी पीले पड़े चेहरे को कान्तिमान बनाने के लिए और देने के लिए किसी अश्रुधूमिल नयन को नई चमक या केवल दे सकू किसी व्यथित हृदय को आराम की एक
धड़कन या किसी राह चलते की थकी आत्मा को प्रफुल्लित कर सकूँ। यदि मैं दे सकू अपने सबल • हाथ का सहारा गिरे हुए को तो मेरा जीवन व्यर्थ नहीं रहेगा।'
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