Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
अपना हाथ देने में? आपका अस्तित्व दूसरों के सुखद अनुभव पर निर्भर करता है-इस तथ्य को कदापि न भूलिए। जब आपका अस्तित्व उपजता है, तब बनता है आपका व्यक्तित्व। व्यक्तित्वहीन व्यक्ति बिना सिर का धड़ होता है। अगर उसकी पहचान नहीं तो वह कैसा यौवन है? व्यक्तित्व आपको सामाजिक जीवन में स्थापित करता है, सबसे जोड़ता है और सबके दिलों में अपनत्व का रस घोलता है। तब चमकता है व्यक्तित्व का वर्चस्व। यह वर्चस्व किसी बाहरी शासक जैसा नहीं, हृदय पर शासन करने वाले जैसा होता है। जन-जन के हृदय सिंहासन पर बैठा कर वह वर्चस्व सबके बीच अपना प्यार उंडेलता है, सहयोग का हाथ बढ़ाता है और हर बलिदान की चुनौती को स्वीकार करता है। तभी वह चरित्र निर्माता से चरित्र नायक बन सकता है। अस्तित्व, व्यक्तित्व व वर्चस्व की सीढ़ियां एवं चरित्र विकास के सोपान : ___ इस प्रकार अस्तित्व, व्यक्तित्व एवं वर्चस्व की सीढ़ियां चढ़ कर यौवन और गौरवशाली बनता है और साथ ही चरित्र निर्माण के उपरान्त चरित्र विकास के सोपानों पर एक-एक करके ऊपर चढ़ता है। क्यों बन पाता है यौवन गौरवशाली? इसी कारण कि उच्चतम विकास की ओर गतिशील बनता हुआ यौवन सबसे पहले अपनी ही आन्तरिकता में गौरव को ढालता है, फिर उस गौरव को बाहर बिखेरता है कि वह गौरव एक-एक व्यक्ति की सांसों में समा कर समूचे विश्व में व्याप्त हो जाए। कर्म की सतत प्रेरणा से वह गौरव चिरस्थायी बनता है। यही यौवन जब चरित्र निर्माण अभियान को सफल बनाने के विविध आयोजनों में कार्यरत बनेगा तो समझिए कि युवा लोग वैसे ही गौरव को भीतरबाहर सब ओर जगाएंगे तथा चरित्र निर्माण की प्रक्रिया का सब ओर विस्तार करेंगे। स्वयं के चरित्र विकास तथा अन्यों के चरित्र निर्माण की प्रक्रिया साथ-साथ चलेगी और यौवन के सुप्रभाव को स्पष्टतः सिद्ध कर देगी।
किन्तु युवा शक्ति को गौरव के इन सोपानों पर चढ़ते हुए अपने विकृत वर्तमान को देखना होगा, चरित्रहीनता से उपजी विषमताओं को समझना होगा तथा चरित्रशीलता की महत्ता को विस्तृत रूप से प्रचारित करना होगा। इसके लिए पहले स्वयं को अपने ही भीतर झांकना होगा तथा दृष्टाभाव से अपने गुण दोषों को परख कर आत्म-संशोधन करना होगा। तभी तो आभास होगा कि कैसे-कैसे विचार किस रूप में फैले हुए हैं तथा व्यक्ति एवं समूहों के चरित्र को हानि पहुंचा रहे हैं? तब युवानों में चिन्तन की धारा बहेगी और उनका संकल्प बनेगा कि कैसे प्रयत्नों से तथा कितनी शीघ्रता से इन सारे विकारों से छुटकारा पाया जा सकता है तथा चरित्रनिष्ठा का त्वरित विकास किया जा सकता है? फिर युवा शक्ति स्वयं तेजी से बदलेगी-स्वतः नए ओजस्वी रूप में ढलने लगेगी और तब समूचे वातावरण को शुभता, शुद्धता एवं सात्विकता में बदलते हुए यौवन के गौरव को स्थापित करेगी। युवा शक्ति बदलेगी और शक्ति का रूप ग्रहण करेगी तभी वह सबको-सकल विश्व को बदल पाएगी और बनेगी स्वस्थ समाज की सर्जक। यों तो व्यक्ति से लेकर विश्व तक सभी की पर्यायें पल-पल बदलती रहती हैं दिशाहीन-सी, किन्तु उसे दिशाबोध कराने तथा उस दिशा में चलाने का काम युवा शक्ति ही कर सकती है। आज तक क्या यह यौवन अपने किसी भी उत्तरदायित्व से कभी पीछे हटा है? फिर आज का यौवन ही चारित्रिक परिवर्तन लाने के उत्तरदायित्व से पीछे क्यों हटेगा? किसी भी
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