Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh

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Page 669
________________ युवाओं, उठो और इस विजय अभियान को सबल नेतृत्व दो! युग के युवक से आज का युवक कमजोर नहीं है। यदि कमजोरी दिखाई देती है तो सत्य स्थिति यह है कि आज की युवा शक्ति ने अविचार की दशा में कमजोरी ओढ़ रखी है। अब समय आ गया है कि युवा शक्ति इस ओढ़ी हुई चादर को तार-तार कर दे और इतनी दूर फैंक दे ताकि उस पर परिश्रम का नया कवच चढ़ जाए और आगे के लिए वह चरित्र निर्माण के महत्कार्य को सफलता तक पहुंचाने हेतु निर्द्वन्द एवं निर्भय बन जाए। ___ युवकों और युवतियों को अपनी आन्तरिकता एवं मनौवैज्ञानिकता का अध्ययन आरम्भ कर देना चाहिए। सच पूछे तो यही स्वाध्याय है, अपना अध्ययन वही तो सच्चा स्वाध्याय होता है। इसके अन्तर्गत पहचान की जाए कि एक युवक की नैसर्गिक शक्तियाँ (Instincts) क्या होती है तथा उसके सम्बद्ध संवेग (Emotions) कैसे प्रकट होते हैं? मनोविज्ञान की दृष्टि से नैसर्गिक शक्तियां और सम्बद्ध संवेग क्रमशः इस प्रकार माने गए हैं-1. पलायन (Scape) एवं भय (Fear), 2. युयुत्सा (Combat) एवं क्रोध (Anger), 3. निवृत्ति (Repulsion) एवं विरुचि (disgust), 4. पैतृक भावना (Paretnal-feeling) एवं दया (Tender-feeling), 5. समवेदना-सहानुभूति (Apeal) एंव दुःख (Distress), 6. संभोग (Mating sex) एवं काम (Lust), 7. जिज्ञासा (Curiosity) एवं आश्चर्य (Wonder), 8. अधीनता (Sub mission) एवं आत्महीनता (Negative slef being), 9. स्वाग्रह (Asarsan) एवं आत्माभिमान (Positive self being), 10. यूथ चारिता (Gregoreasnece) एवं एकाकी भाव (Loneliness), 11. खाद्यान्वेषण (Food sicking) एवं तृप्ति (Gusto), 12. परिग्रहण (Acquisition) एवं स्वत्व (Ownership), 13. रचनात्मकता (Constructiveness) एवं कृति (Creativeness) तथा 14. हास (Laughter) एवं आमोद (Amusement)। इनका अध्ययन करने से मानसिकता की कार्यप्रणाली भली प्रकार समझी जा सकेगी तथा मन को सरलतापूर्वक आत्म-नियंत्रण में लाया जा सकेगा। युवानों को सदुपयोग की दृष्टि से अपना समय चक्र इन चार नियमों के आधार पर निश्चित करना चाहिए-1. पहले अपने लक्ष्याधीन कार्यों की सूची तैयार करो, 2. फिर एक सुनिश्चित कार्यक्रम की रूपरेखा बनाओ, 3. तब उसे पूर्ण करने हेतु उपयुक्त समय चक्र का निर्धारण करो तथा 4. तदनन्तर आवश्यक तत्त्वों पर अपने ध्यान को एकाग्र एवं केन्द्रित बना लो। चरित्र निर्माण तथा चरित्रशीलता का प्रचार सफलतापूर्वक करने के लिए यह त्रिसूत्री फार्मूला अपनाया जा सकता है-1. अपने भीतर झांको और अपने आपको जानो-(अ) मोटे तौर पर अपनी जैविकी (Biology) को समझो, (ब) स्पष्ट रूप से अपनी मानसिकता (Sicology) का अध्ययन करो और (स) पूर्ण रूप से अपनी आत्मिक शक्ति (Spirituality) की अनुभूति लो, 2. तब अपने विचार, वचन एवं कर्म का उपचार स्वयं करो जिससे वांछित सब कुछ स्वयमेव ही उपलब्ध होता जाएगा एवं 3. जीवन में स्थित प्रज्ञता की अवस्था को पनपाओ और उसका निरन्तर अभ्यास करो। यह फार्मूला युवकों को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाएगा। वैज्ञानिक साधनों के कारण देहसुख की लालसाओं का कुप्रभाव हो अथवा पाश्चात्य संस्कृति का अपरूप माथे पर चढ़ गया हो, जो आज की युवा पीढ़ी किसी रूप से रास्ते से भटक गई है, उसे 553

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