Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
भावनाओं के समान ही यह भी आत्मा की नैसर्गिक भावना है। जीव का स्वरूप ज्ञानमय है (जीवो उवओग लक्खणो)। बल्कि जो ज्ञान है वही आत्मा है और जो आत्मा है वही ज्ञान है (जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया)। वैदिक परम्परा में भी यही स्वर मुखरित हुआ कि ज्ञान है, वही ईश्वर है (प्रज्ञानं ब्रह्मः)। ___ इन चारों भावनाओं को आत्मसात् करना प्रत्येक युवक एवं युवती के लिए आवश्यक है, ताकि वे चरित्रहीनता के दल-दल में फंसे व्यक्तियों की भावनाओं को समझ सके, उन्हें भावनाशील बना सके तथा उन्हें चरित्रशीलता से विभूषित कर सके। विवेक और शक्ति का सम्मिश्रण चाहिए यौवन के वेग में :
यौवन बावले घोड़े की तरह होता है, जो चपल और चंचल ही नहीं, तीव्र गति वाला भी होता है। उस पर सवारी साधना सरल है तो दुरुह भी है। यौवन अरबी घोड़े की तरह शक्ति का पुंज होता है। ' शक्ति अगर बेलगाम है तो उस पर नियंत्रण पाना तो कठिन होता है किन्तु उसके सदुपयोग की संभावना भी कम हो जाती है। जैसे बावले घोड़े पर लगाम लग जाए तो हवा से बातें करते हुए उस घोड़े पर चढ़कर लंबी दूरियां नापी जा सकती है, उसी तरह यौवन की अपूर्व शक्ति के साथ विवेक का सम्मिश्रण हो जाए तो वही यौवन इतना रचनात्मक हो सकता है कि फिर उसकी गति हवा से ही बातें करेगी। यौवन के वेग में शक्ति के साथ विवेक का सम्मिश्रण नितान्त आवश्यक है।
यह मान्यता सही नहीं है कि जो भी गुण प्राप्त हुआ है या वस्तु मिली है, उसका यथावत् रीति से कुछ न कुछ उपयोग होना चाहिए। यह गलत धारणा है। उपयोग के साथ हर हालत में विवेक का होना जरूरी है, क्योंकि विवेक में ही क्षीर-नीर बुद्धि होती है। जब तक यह ज्ञात न हो कि अमुक गुण या वस्तु में शुभता का दूध अधिक है या अशुभता का पानी-तब तक उपयोग की सार्थकता का आकलन नहीं किया जा सकता है। शक्ति से कार्य करने का सामर्थ्य तो मिल जाएगा, किन्तु उससे उस सामर्थ्य के उपयोग की समस्या हल नहीं होगी। सामर्थ्य के सदुपयोग की समस्या का समाधान तो विवेक ही निकाल सकेगा। शक्ति तो दुर्योधन और दुःशासन में भी थी और कंस तथा रावण में भी थी, लेकिन उस शक्ति का परिणाम क्या निकला? क्या उससे व्यक्ति या विश्व का कुछ भी भला हुआ? किसी भी रूप में पहुंचा हो, उनकी शक्ति के प्रयोग से विश्व की हानि ही हुई। विद्या अज्ञान के अंधेरे से दूर करने के लिए है, ज्ञान के प्रकाश के लिए है। उस विद्या का उपयोग यदि पंथों, सम्प्रदायों और मजहबों की लड़ाई में किया जाए तो वह उस विद्या का दुरुपयोग ही होगा। विद्या के इस उपयोग से वातावरण में पवित्रता नहीं उपजेगी, बल्कि उसमें अधिक कटुता, विद्वेष और उत्तेजना ही फैलेगी। इसी प्रकार धन और बल का दुरुपयोग भी विध्वंसकारी होता है। किसी के पास धन या बल है तो उसका यह मतलब नहीं होता कि उससे वह दूसरों के लिए विपदाएं खड़ी करें। विवेक और अभाव में शक्ति सदुपयोग मुश्किल से ही दिखाई देगा। यही कारण है कि शक्ति के साथ विवेक होगा तभी वह शुभ और सुखद बन सकेगी। यदि किसी के पास शक्ति भी है और विवेक भी है तो वह अपनी प्राप्त शक्ति के सहयोग से किसी गिरते हुए का हाथ थामेगा और उसे अपनी छाती से लगा कर जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा फूंकेगा, लेकिन यदि शक्ति के साथ विवेक न हुआ तो वह
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