Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh

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Page 677
________________ युवाओं, उठो और इस विजय अभियान को सबल नेतृत्व दो। रात-दिन भोग विलास और ऐश्वर्य में डूबे रहने के कारण देवता भी अपने आपको इन्द्रियों को दासता से मुक्त नहीं कर सकते। तो फिर ये सब के लिए बने हैं। मनुष्य के लिए ही तो। मानव की आत्मा को प्रबद्ध करने के लिए ही तो सब शास्त्रों ने वह ज्योति जलाई है. वह उदघोष किया है. जिसे देख और सुन कर उसका सुप्त ईश्वरत्व जाग सके। ...संसार में जितने भी कष्ट हैं, संकट और आपत्तियाँ हैं, उलझनें और संघर्ष हैं, उनकी गहराई में जाकर यदि हम ठीक-ठीक विश्लेषण करें तो यही पता चलेगा कि जीवन में जो भी दुःख हैं, वे पूर्णतः मानवीय हैं-मनुष्य के द्वारा मनुष्य पर लादे गए हैं। हमारे जो पारस्परिक संघर्ष हैं, उनके मूल में हमारा वैयक्तिक स्वार्थ निहित होता है। जब स्वार्थ टकराता है तो संघर्ष की चिनगारियां उछलने लगती हैं। जब प्रलोभन या अहंकार पर चोट पड़ती है तो वह फुकार उठता है और परस्पर वैमनस्य व विद्वेष भड़क जाता है। इस प्रकार एक व्यक्ति से दूसरा व्यक्ति, एक समाज से दूसरा समाज, एक सम्प्रदाय से दूसरा सम्प्रदाय और एक राष्ट्र से दूसरा राष्ट्र अपने स्वार्थ और अहंकार के लिए परस्पर लड़ पड़ते हैं, एक दूसरे के मार्ग में कांटे बिखेरते हैं, एक दूसरे की प्रगति का रास्ता रोकने का प्रयत्न करते हैं और परिणामस्वरूप संघर्ष, आपत्तियां और विग्रह खड़े हो जाते हैं। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र तबाह हो जाते हैं। आप देखते हैं कि संसार में जो महायुद्ध हुए हैं, नरसंहार हुए हैं और अभी जो चल रहे हैं, वे प्राकृतिक हैं या मानवीय? स्पष्ट है, प्रकृति ने उन युद्धों की आग नहीं सुलगाई है, अपितु मनुष्य ने ही वह आग लगाई है। मनुष्य की लगाई हुई आग में आज मनुष्य जाति नष्ट हो रही है, परेशान और संकटग्रस्त बन रही है।' (चिन्तन की मनोभूमि, पृष्ठ 516-517) जहां तक वैचारिकता का प्रश्न है, उन पर मुनि जी का यह उद्बोधन स्पष्टता के लिए पर्याप्त है। युवानों को इस वैचारिकता को लेकर कर्मयोग की उपासना करनी चाहिए तथा चरित्र निर्माण को विश्व के विशाल प्रांगण में पूर्णतया विस्तृत बना देना चाहिए। युवानों, इस विजय अभियान को अपना नेतृत्व दें-सफल बनावें : शक्ति पुंज, विवेक सम्पन्न एवं चरित्रनिष्ठ युवा वर्ग को अधिक कहने की आवश्यकता नहीं होती, वे तो संकेत से ही सब समझ लेते हैं एवं अपने कर्तव्य को धारण करके दायित्व संभाल लेते हैं। मेरी आकांक्षा है कि चरित्र निर्माण के इस विजय अभियान को युवा वर्ग अपना सशक्त नेतृत्व प्रदान करें तथा विभिन्न चरणानुसार इसे सफल बनावें। अन्त में युवानों के लिए मर्मज्ञ साहित्यकार वेदव्यास का एक गीत उद्धृत है "शब्दों की अंगुलि पकड़ कर, अर्थ की पगडंडियों पर चेतना के पंरव ले-तुम समय को लांघ जाओ। धूप का आंचल उठाए, कथ्य की किरणें बिछाए अनुभवों की गूंज लेकर, तुम सृजन को लांघ जाओ। रंग का आवेग भर कर, कल्पना के गुरु शिरवर पर लोक का विश्वास लेकर, तुम क्षितिज को लांघ जाओ।" 561

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