Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
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जबकि संयम सत्य को भी मधुर एवं प्रिय बना देता है ।
22. शिष्य - 'क्या बनूँ - गुणी या गुणानुरागी ?"
गुरु - 'गुणानुरागी ।' क्योंकि गुणी बहुत मिल सकते हैं, पर गुणानुरागी कम मिलते हैं। ये गुणानुरागी गुणियों के सर्जनहार होते हैं। बीज अंकुर को पैदा करता है, पर अंकुर बीजों को नहीं ।
23. शिष्य-' क्या चाहूँ-स्नेह या सद्भाव ?'
गुरु-' सद्भाव । ' क्योंकि स्नेह तो अपने वालों को समान समझना मात्र है जबकि सद्भाव प्राणिमात्र के प्रति शुभ- भावनाओं का प्रतिफल है।
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24. शिष्य - ' किसकी आवश्यकता है विचार की या कल्पना की ?'
गुरु - ' विचार की ।' क्योंकि कल्पना में केवल उड़ान होती है, नयेपन की तड़पन होती है किन्तु समय उसी क्षण नए को पुराने में बदल देता है जबकि विचार वर्तमानिक होते हैं और सार्थक होते हैं।
25. शिष्य - 'क्या बनूँ - अमीर या अमर ?'
गुरु-'अमर ।' क्योंकि अमीर मर जाता है पर उसका धन पड़ा रह जाता है, जबकि अमर न मरता है, न जन्म लेता है, न धन कमाता है और न उसे धन को छोड़ना पड़ता है।
26. शिष्य - ' श्रेष्ठ कौन -सागर या झील ?'
गुरु- 'सागर ।' क्योंकि नाला बहता हुआ झील के पास पहुंचा मिलने के लिए, पर झील ने इन्कार कर दिया । नाला सागर के पास पहुंचा, सागर ने मिला लिया । झील रुक गई, सागर लहराता रहा। बड़ा-बड़ा ही रहता है, वह सबको मिलाता और सब में मिलता हुआ अपने अस्तित्व को स्थाई बना लेता है ।
27. शिष्य - ' ताकत बड़ी है या तपस्या ?'
गुरु-' तपस्या ।' क्योंकि ताकत के बल पर अर्जित की गई ख्याति बिजली के बल्ब के समान होती है जो फ्यूज होते समय अधिक प्रकाश देता है पर अन्त में उसके तार बिखर जाते हैं। जबकि तपस्या से प्राप्त ख्याति को भी तपस्वी विसर्जित कर देता है ।
28. शिष्य - 'मायूसी चाहूँ या मुस्कान ?'
गुरु - 'मुस्कान।' क्योंकि मुस्कान जिंदादिलों की पहचान होती है, आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बनती है जबकि मायूसी मृत्यु का आमंत्रण है और निमंत्रण होती है अनादर एवं अवसाद का । 29. शिष्य - 'क्या कठिन है और क्या सरल है?'
गुरु-'आत्म-प्रशंसा करना सरल है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी प्रशंसा करने में संकोच नहीं करता जबकि पर-प्रशंसा करना कठिन है। जब तक गुणानुराग पैदा नहीं होता, तब तक