Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
असहिष्णुता के कारण अनेक समस्याएं जन्म लेती जा रही हैं, अतः सहिष्णुता का विकास आवश्यक है तथा इस अभियान के लिए तो अनिवार्य मानिए।
ज्ञाता-दृष्टाभाव का मलूल अभिप्राय यही है कि मन का शोधन हो, मन का सामर्थ्य बढ़े तथा मन को चरित्रशीलता के पथ पर गतिमान बनावें। इसके लिए मन का रेचन करना चाहिए-पंच कर्म करना चाहिए। इसमें सम्मिलित हैं-ज्ञाता-दृष्टा भाव का विकास, अशुद्ध एवं अशुभ विजातीय कणों से छुटकारा, निर्मलता का प्रसार, आचरण शुद्धता एवं क्रियाशीलता आदि। ज्यों-ज्यों मन का शोधन होता जाएगा, ज्ञाता-दृष्टा भाव स्थायित्व पकड़ लेगा। यह भाव हमारे मन का प्रहरी बन जाएगा, फिर कोई विभाव भीतर कैसे घुस सकता है? ऐसे शुद्ध एवं सक्रिय मन के साथ चरित्र निर्माण के अभियान में प्रवृत्ति करेंगे तो निश्चय मानिए कि दृढ़ता के सूत्र जुड़ते रहेंगे।
आधुनिक युग में प्रचार का सही नेटवर्क सफलता की गारंटी होता है: ___ एक दृष्टि से आधुनिक युग प्रचार का युग है। यह नहीं कि प्रचार का पहले महत्त्व न रहा होआखिर साधु साध्वी अपनी मर्यादाओं के अनुसार विहार करते हुए उपदेशों, प्रवचनों आदि के द्वारा धर्म का प्रचार ही तो करते हैं। यह अवश्य है कि आधुनिक युग में प्रचार के अनेक ऐसे माध्यमों का विकास हो गया है जिनके उपयोग से प्रचार प्रभावशाली बन गया है। चरित्र निर्माण अभियान भी एक ऐसा विषय है जिसका नानाविध प्रचार किया जाए तो इस अभियान की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है। अभियान हेतु प्रचार के निम्न शालीन माध्यमों का प्रयोग करके चरित्र निर्माण को लोकप्रिय बनाते हुए इसका त्वरित प्रसार किया जा सकता है___ 1. संगठन की सुगठितता : अभियान का आधार बनेगा इसके निमित्त बनाया जाने वाला संगठन । संगठन की संक्षिप्त रूपरेखा ऊपर दी गई है किन्तु संगठन का नेटवर्क सब ओर फैला हुआ होना चाहिए, पर साथ ही बारीकी से आपस में जुड़ा हुआ भी होना चाहिए कि कोई भी कार्यक्रम एक साथ सब ओर जन-जागरण के साथ आरंभ किया जा सके। इसके लिए संगठन की सुगठितता आवश्यक है। सुगठन को दो पहलुओं से लें। एक पहलू यह कि पूरे देश में संगठन का फैलाव होप्रत्येक राज्य के प्रत्येक जिले तक तथा प्रत्येक जिले के पूरे अन्दरूनी भागों में जो सारी तहसीलों, नगर-कस्बों तथा ग्रामों को अपने में समेट ले। सब जगह यथास्थिति चरित्र निर्माण समितियां काम करती हों अथवा एकाकी प्रतिनिधि या पर्यवेक्षक फैलाव में नए केन्द्र बनते रहने चाहिए। जैसे एक राज्य पकड़ लिया तो दूसरे अनजाने राज्य में कार्य शुरु करने की अपेक्षा पहले उसी राज्य के सभी जिलों में और एक-एक जिले की छोटी ईकाइयों में विस्तार किया जाए। यदि एक राज्य में संगठन का नेटवर्क गहराई से जम गया तो दूसरे राज्य में अभियान को आरंभ करते समय पहले राज्य की जमावट उसमें मदद देगी तो वही जमावट दूसरे राज्य को आसानी से प्रभावित भी करेगी। आशय यह कि जहां भी कार्यारंभ हो वह सघनता पकड़े। इससे अभियान की लोकप्रियता बढ़ेगी और स्थानस्थान पर अच्छा जन समर्थन प्राप्त होने लगेगा।
दूसरा पहलू यह कि संगठन में मुख्य रूप से ऐसे व्यक्तियों को स्थान मिले जिनका चरित्र अति
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