Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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चरित्रबल से ही घूमेगा शुभंकर परिवर्तन का चक्र
तष्णा और मर्छा भाव से छटकारा मिले तब अनासक्ति आएगी। व्यक्ति परस्पर स्नेह संबंध में इसी कारण जुड़े हुए नहीं रह सकते हैं कि स्वार्थ उनको टकराता रहता है। इस स्वार्थ का अन्त होता है तृष्णा की समाप्ति से, अनासक्ति से। अनासक्ति अन्तरात्मा में समा जाएगी तो सह-अस्तित्व का भाव स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाएगा। जब स्वार्थ नहीं रहेगा तो साथ-साथ रहने में कौनसी अड़चन आ सकती है? सह-अस्तित्व जब अस्तित्व में आ जाएगा तो सहकार की स्नेह भावना स्वतः ही प्रकट हो जाएगी, क्रियाशील बन जाएगी। सभी स्थानों पर और सभी स्तरों पर दुर्जनता समाप्त होने लगेगी तथा सज्जनों का सुखमय साथ सब ओर दिखाई देगा। ये तीनों तत्त्व जब जीवन प्रणाली में समाते हैं तो उच्चतम स्तर पर भी पारिवारिक सद्भाव पनपने में कोई कठिनाई नहीं आती। चरित्र के उन्नत बन जाने पर यह सब कुछ सहज हो जाता है। ___27. युवा पौरुष को इस विजय अभियान में लगा दो : युवा शक्ति अतुलनीय होती है, जो समस्या आती है वह होती है इसके सदुपयोग की। एक बार किसी युवक या युवती के मन में यह बैठ जाए कि अमुक उद्देश्य पूर्णतया मानवता के हित में है तो फिर उसका पौरुष उसमें पूरी तरह से कार्यरत बना रहेगा। युवा पौरुष का इससे बढ़कर क्या सदुपयोग हो सकता है कि उसका नियोजन चरित्र निर्माण से संबंधित अभियान में हो। यह तो स्व-पर कल्याण का सर्वोत्तम अवसर है। युवा शक्ति के लिए इस अभियान के परिप्रेक्ष्य में ये कार्य महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं-1. सबसे पहले और अभियान के साथ-साथ स्वयं के चरित्र का निर्माण किया जाए और उसका श्रेष्ठतम विकास हो, 2. नए मानव का निर्माण हो-यह कार्य प्राथमिकता पर रहे, 3. जन-जागरण का अलख जगाया जाए जिसकी गूंज जन-मन के हृदय को छुए, 4. कर्मण्य वृत्ति का उत्तम परिचय प्रस्तुत किया जाए कि कहीं किसी भी कठिनाई से थके नहीं, रुके नहीं और झुके नहीं, 5. मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा हेतु व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन लाने का उपक्रम किया जाए और यह तथा इससे बहुत कुछ अधिक चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में सहभागी बनने पर किया जा सकेगा और सामूहिक शक्ति को भी साथ में जोड़ा जा सकेगा। ___ यह गागर में सागर के समान विचार एवं आचार संहिता की रूपरेखा है जिसमें सुन्दर रंग युवा एवं समर्पित शक्ति के हाथों ही भरे जा सकते हैं। यह निश्चित है कि समर्पण की भावना के बिना किसी भी अभियान में जान नहीं फूंकी जा सकती है। सच है कि जान लगाकर ही जान फूंकी जा सकती है। जान लगाने वाले भले ही बहुत कम संख्या में सामने आते हैं, किन्तु यहां संख्या बल का कोई महत्त्व नहीं। एक चन्द्रमा सारे अंधकार को दूर कर देता है, जो काम हजारों तारे मिलकर भी नहीं कर पाते हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जब ऐसे जान लगाने वाले जान फूंकने का चारित्रिक कार्य सम्पन्न कर देते हैं तो उससे नई जान पाने वालों की संख्या कभी कम नहीं होती। चरित्र निर्माण जीवन की कला एवं चरित्र विस्तार विश्व का एकीकरण : ___ मानव चरित्र का निर्माण करना और उसे निरन्तर गुण-सम्पन्नता की दिशा में आगे बढ़ाना वास्तव में जीवन की कला है और यह इतनी महत्त्वपूर्ण है कि इस अभियान में सारा का सारा जीवन ही उसकी प्राप्ति में लग जाए तब भी कोई विचार की बात नहीं। चरित्र का पुट लगने से क्षुद्र जीवन ज्यों
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