Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh

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Page 652
________________ सुचरित्रम् दूर तक अपने संगी-साथियों के दिलों में बिखेर दें-बांट दें। इन कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दें___1. सामयिक एवं सकारात्मक सोच बनावें : सुख पूर्वक जीवन जीने की मुख्य शर्त है कि व्यक्ति वर्तमान में जिए-सबसे पहले सामयिकता को समझे। सामान्यतः व्यक्ति अपने अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है। इस संबंध में सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार शरद् चन्द्र चटर्जी अपने उपन्यास 'शेष प्रश्न' में कहते हैं-'मन का बुढ़ापा वही है जो अपने सामने की ओर नहीं देख सकता, जिसका हारा-थका जराग्रस्त मन भविष्य की समस्त आशाओं को तिलांजलि देकर सिर्फ अतीत के अन्दर ही जिन्दा रहना चाहता है और मानों उसे कुछ करने की, कुछ पाने की चाह ही नहीं है-वर्तमान उसकी दृष्टि में लुप्त है, अनावश्यक है और भविष्य अर्थहीन । अतीत ही उसके लिए सब कुछ है। वही उसका आनन्द, वही उसकी वेदना और वही है उसका मूलधन-उसी को भुना-भुना कर गुजर करके जीवन के बाकी दिन वह बिता देना चाहता है। अतीत की स्मृतियों में खोये रहने वाले अधिकांश व्यक्ति भविष्य को बनाने की कार्य योजना में नहीं, बल्कि भविष्य की काल्पनिक उड़ानों में ही उड़ते . फिरते हैं। ये वृत्तियां उचित नहीं। एक की स्मृति और दूसरे की कल्पना में वर्तमान के सुनहरे पल यों ही बीत जाते हैं-निरर्थक हो जाते हैं। सामयिकता के अभाव में सार्थक कुछ भी नहीं हो पाता। साथ ही सोच का सकारात्मक होना भी चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक है। गिलास जितना भरा है उसे देखकर खुश होना सीखें, वह कितना खाली है उसका राग गाकर दुःखी न हों। समय के अनुसार बदलते परिवेश में जीने का अभ्यास होना चाहिए। 2. आत्म विश्वास एवं स्नेह भरपूर रखें : जीवन को रुचिकर तथा खुशहाल बनाने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं के अन्तर में खूब स्नेह और विश्वास भरे। आत्मविश्वास एवं स्नेह से भरपूर व्यक्ति ही दूसरों को विश्वास व स्नेह दे सकता है तथा उसकी सोई हुई जीवन्तता को पुनर्जीवित कर सकता है। वही व्यक्ति सहानुभूति एवं सहयोग की भावना को भी बलवती बना सकता है। परिवार, समाज और राष्ट्र तथा यहां तक कि समग्र विश्व को एक सूत्र में बांधने में सहानुभूति एवं सहयोग की भावना अत्यन्त उपयोगी और सहायक हो सकती है। इस भावना के बिना व्यक्ति का स्वयं का जीवन तो नीरस होता ही है, पर उसकी वह नीरसता परिवार, समाज आदि की सरसता को भी पनपने नहीं देती है। . . 3. अधिकतम मित्र बनावें,समस्त प्राणियों से मैत्री रखें: अच्छी दोस्ती जीवन को खुशहाल और समझदार बनाने में अहम भूमिका अदा करती है, क्योंकि जब कभी भी व्यक्ति अपने को किसी परेशानी या समस्या से घिरा हुआ महसूस करता है तो एक सच्चे और अच्छे दोस्त से मिली सलाह से ही उसे सुकून मिल सकता है और काफी हद तक समस्या का समाधान भी निकल सकता है। अच्छे दोस्त के साथ व्यक्ति सहजता और हल्कापन पाता है। दिलो-दिमाग को तनाव मुक्त रखते के लिए अच्छा है कि किसी सच्चे दोस्त से अपना सुख-दुःख बांट लिया जाए। ध्यान रखें-जो व्यक्ति हर समय में अपने ही दुःखों का रोना रोता रहता है-सुख और खुशियां उसके दरवाजे से ही वापिस लौट जाती है। इसलिए अधिकतम मित्रों को अपना सच्चा साथी बनावें। साथ ही संसार के एक भी प्राणी के साथ बैर न रहे, सबके साथ मैत्री का भाव रखें। 538

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