Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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चरित्र गति हेतु ग्राह गुणसूत्र व प्रचार नेटवर्क
हथौड़े की मार ताले को चिपका सकती है पर खोल नहीं सकती, जबकि छोटी-सी चाबी
ताले को खोल देती है क्योंकि वह अन्दर तक पहुँच सकती है। 13. शिष्य-क्या चुनूँ-आग या जल?'
गुरु-'आग।' क्योंकि आग पानी को जला कर भाप बना सकती है पर जल स्वयं भाप नहीं
बन सकता। आग निर्भार है और ऊर्ध्वगामी, जल भारी है और अधोगामी। 14. शिष्य-' श्रेष्ठ कौन-जिज्ञासु या साधक?'
गुरु-'साधक।' क्योंकि साधक साधना पहले करता है और फिर जानता एवं मानता है,
जबकि जिज्ञासु पहले जानता है, फिर मानता है और फिर करता है। 15. शिष्य-'किसमें विश्वास करें-दल में या दिल में?'
गुरु-दल में।' क्योंकि दिल वाले का कोई दल नहीं होता, जबकि दल वालों में दिल नहीं
होता। 16. शिष्य-'क्या अच्छा है-उदाहरण अथवा आचरण?'
गुरु-'आचरण।' क्योंकि नेता उदाहरण देकर जनता को सिर्फ खुश करते हैं, जबकि संत
आचरण करके जनता को सीख देते हैं। 17. शिष्य-'क्या चाहूँ-विश्वास या श्वास?'
गुरु-'विश्वास।' क्योंकि विश्वास ही सच्चा श्वास होता है, जबकि अनित्य श्वास का क्या
विश्वास? यह श्वास राह चलते-चलते कभी-भी रुक सकती है। 18. शिष्य- क्या प्रिय हो-प्रसन्नता या खिन्नता?'
गुरु-'प्रसन्नता।' क्योंकि प्रसन्नता प्रकृति की देन होती है जबकि खिन्नता विकृति की उपज।
प्रकृति की देन को विकृत नहीं बनाना ही प्रिय होना चाहिए। 19. शिष्य-'क्या अच्छा-जोड़ना या तोड़ना?'
गुरु-'जोड़ना।' क्योंकि टूटी हुई हड्डी प्लास्टर से जुड़ जाती है, पर टूटा हुआ दिल प्लास्टर से
नहीं जुड़ता, दिलों को तोड़ना कभी नहीं और जोड़ना सदा चाहिए। 20. शिष्य-' श्रेष्ठ क्या-क्रोध या प्रसन्नता?'
गुरु-'प्रसन्नता।' क्योंकि प्रसन्नता होने पर व्यक्ति पहले स्वयं से सुखी होता है और बाद में सभी को सुखी करता है। किन्तु क्रोध, पहले स्वयं व्यक्ति को दुःखी बनाता है और बाद में
सबको दुःखी बनाता है। 21. शिष्य-क्या चाहूँ-सत्य या संयम?'
गुरु-'संयम।' क्योंकि सत्य कभी-कभी कटु हो सकता है, दूसरों को अप्रिय लग सकता है,
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