Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
न ही गति । अतः आज की मांग है कि नई पीढ़ी अपने मन-मानस को तैयार करे, अपने विवेक व सामर्थ्य को जगावें और अपने सार्थक व्यवहार से सर्वांगीण चरित्र को इस तरह ढालें जिससे समाज में विस्फोटों की आशंकाएं दूर हों और नये सुखद शुभ परिवर्तनों का पथ प्रशस्त हो । अब चरित्रहीनता का तमस सह्य नहीं होना चाहिए और सुदृढ़ चरित्र विकास के साथ सत्कृति के प्रकाश को सब ओर फैलाने के लिए कमर कस लेनी चाहिए।
सत्कृति में फिर से भरने होंगे, कृति के चमचमाते रंग :
जब प्रतिकृति पतन की गहराई के निचले तल तक पहुंच जाती है तो वहीं से उत्थान की चढ़ाई शुरू होती है और वहीं सत्कृति का आरम्भ माना जाता है। आज किसी समाज का क्षेत्र हो या राष्ट्र का, धर्म का क्षेत्र हो या राजनीति का, किसी वर्ग का प्रश्न हो या जाति का, सब ओर से चरित्रहीनता की जो अकुलाहट उमड़-घुमड़ रही थी, उसमें एक स्थगन सा प्रतीत होने लगा है और चारित्रिक गुणों की गिरावट को रोकने की कसमसाहट महसूस होने लगी है। यह गत्यारंभ का लक्षण है। इसलिए उमंग आशास्पद है। घने अंधेरे में कहीं दूर तक भी प्रकाश की क्षीण-सी रेखा दिखाई दे, तब उत्साह, और सक्रियता की नई लहर - सी फैल जाती है। आज हमारे यहां प्रभातकाल से पहले की ऊषा की हल्की-सी लाली फैलने लगी है। यह सत्कृति की लाली है, जो प्रतिकृति के कुप्रभाव को समाप्त करके कृति जैसे सवातावरण की रचना करेगी।
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इसमें सन्देह नहीं कि प्रत्येक क्षेत्र में समस्याओं का जाल जंजाल फैला हुआ है, जो जटिल और कठिन है, फिर भी व्यक्ति से लेकर विश्व तक सत्कृति हेतु किये जाने वाले सघन प्रयत्नों का दौर भी विश्वास दिला रहा है कि अब अंधेर के मिट जाने में देर नहीं। इस दृष्टि से विभिन्न क्षेत्रों की वर्तमान अवस्था की सामान्य सी समीक्षा करें।
1. धर्म का क्षेत्र - चरित्र, विकास एवं जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने वाले इस क्षेत्र की पहले चर्चा करें। सम्प्रदायीकरण के कारण धर्म की लोकप्रियता एवं सार्थकता घटी, किन्तु अब सम्प्रदायों को एक दूसरी के विरुद्ध संघर्ष में झौंकने की मनोवृत्ति मन्द हुई है तथा कट्टर विरोधी सम्प्रदाएं भी आपस में तालमेल बिठाने की कोशिशें करने लगी हैं। चाहे बड़े पैमाने पर बड़ी सम्प्रदायों का मामला हो या छोटे पैमाने पर छोटी सम्प्रदायों का मामला, आपसी वाद-विवाद, खंडन-मंडन और आरोपप्रत्यारोप का क्रम समाप्त प्राय: है । आडम्बरों, प्रदर्शनों तथा दिखावों की जैसी बाढ़ उठी थी, उसमें कुछ कमी जरूर है और अब भी इसके लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। फिर भी कहा जा सकता है कि सामान्य जन के मन में ऐसे आडम्बरों के प्रति तितिक्षा अवश्य उत्पन्न हो गई है। आडम्बर चल इसीलिए रहे हैं कि नव धनाढ्य धर्म के इस अवैधानिक द्वार को ही अपनी कीर्ति प्रसार का माध्यम बना रहे हैं। भीतर से दिखावों की मानसिकता इतनी जर्जर होती जा रही है कि उसे एक धक्के की जरूरत है - मजबूत हाथों के धक्के की ।
2. राजनीति का क्षेत्र - यह क्षेत्र इतनी प्रबलता पर है कि विश्व से लेकर व्यक्ति तक को प्रभावित कर रखा है। धार्मिक क्षेत्र में भी संस्थाओं के प्रबंधन, निर्वाचन आदि की प्रक्रियाओं में