Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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नई सकारात्मक छवि उभरनी चाहिए धर्म-सम्प्रदायों की
गई है, उन्हें धो पौंछ कर मूल स्वरूप को चमकाने का काम प्रमुख है ताकि धर्म के रूप में मानव का मूल स्वभाव पूर्णतः प्रकाशित बने। __सामान्य जन में जमे इस भ्रम को मिटाना होगा कि अधिकतर लोग नैतिकता को पसन्द नहीं करते हैं। यह भ्रष्टाचारियों का दुष्प्रचार है। हकीकत यह है कि सभी लोग (मन ही मन में भ्रष्टाचारी भी) नैतिकता को चाहते हैं, पर आर्थिक तथा सामाजिक विषमताओं एवं धर्म के नाम पर पनपने वाली विकृतियों के प्रचलित रहने की दशा में नैतिकता के हर क्षेत्र में असफल रहने से आम लोग अवश्य अपनी धारणा से कभी कभी डगमगा जाते हैं। इस कारण इस प्रदूषित वातावरण को अप्रभावी बनाना आवश्यक है।
धर्म (मूल स्वभाव) को प्राप्त करने के प्रति सबका रुझान हो इसके लिए नीतियों का स्वस्थ होना जरूरी है, प्रत्येक वृत्ति एवं प्रवृत्ति में नैतिकता का समावेश होना ही चाहिए। परन्तु प्रश्न है कि यह सब होगा कैसे? इसका एक ही उत्तर देना हो तो वह यह होगा कि सब चरित्र निर्माण एवं चरित्र विकास से अवश्य संभव होगा। चरित्रशीलता ही धर्म और नीति के सारे मैल को धोकर उन्हें शुद्ध एवं शुभदायक बनाने में पूर्णतः समर्थ होती है। चरित्रशीलता पनपती है तो कर्त्तव्यनिष्ठा परिपुष्ट होती है। कर्त्तव्यनिष्ठा नैतिकता को प्राणवान बनाती है तथा परिपक्व नैतिकता ही धर्म का मौलिक स्वरूप ग्रहण कर लेती है। चरित्रशीलता के मोर्चे पर डटने वाले सैनिकों के लिए ये कुछ सुझाव उपयोगी हो सकते हैं1. जीवन में धर्म यानी कि मानव धर्म को ही स्थान दें, साम्प्रदायिकता या कट्टरता को कदापि नहीं।
इससे सबके साथ सहज सम्पर्क, सौम्य व्यवहार तथा विचार-आचार का सामंजस्य बन सकेगा। 2. जीवन के सभी क्षेत्रों-वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक में वैचारिक क्रान्ति जगावें तथा
अहिंसापूर्ण विधि से आत्मवत् व्यवहार को विकसावें। 3. समग्र प्राणियों के साथ भावात्मक तथा संवेदनामूलक एकता को सर्वत्र प्राथमिकता दें। 4. सभी प्रकार की विषमताओं-जातिगत, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि से डट कर लोहा ___ लें एवं मानवीय चेतना को उबुद्ध बनावें। 5. सर्वत्र आत्मिक चेतना की जागृति तथा मानवीय मूल्यों की रक्षा को अपना लक्ष्य बनावें। 6. सभी दृष्टियों से मनुष्यकृत असमानता को मिटावें तथा मानवीय समता को सर्वोच्च स्थान दें। 7. अपनी चरित्रशीलता की यात्रा 'स्व' से प्रारम्भ करें और 'पर' के साथ सम्पन्न, किन्तु 'स्व' को सदा गौण करें और समय आवे तो 'स्व' को न्यौछावर कर देने से भी हिचकिचाएं नहीं।
ऐसे ही उन सूत्रों को अपनाना होगा कि जिससे चरित्र विकास नव मानव धर्म का प्रतीक बन जाए। नई सकारात्मक छवि मूल से उभरेगी और वही नई विश्व-संस्कृति रचेगी : - आधुनिक सभ्यता के उदयकाल से लेकर अब तक मानवीय कष्टों के निवारण के अथक प्रयास किए गए हैं जिनमें विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग भी शामिल है। लेकिन क्या हम
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